माहे मुहर्रम और हजरत इमाम हुसैन की शहादत का फ़लसफ़ा

BY-THE FIRE TEAM

मुहर्रम  इस्‍लामी महीना है और इससे इस्‍लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है. लेकिन 10वें मुहर्रम को हजरत इमाम हुसैन की याद में मुस्लिम मातम मनाते हैं. इस दिन जुलूस निकालकर हुसैन की शहादत को याद किया जाता है.

10वें मोहर्रम के दिन ही इस्‍लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने प्राण त्‍याग दिया दिए थे. वैसे तो मुहर्रम इस्‍लामी कैलेंडर का महीना है लेकिन आमतौर पर लोग 10वें मोहर्रम को सबसे ज्‍यादा तरीजह देते हैं. इस बार 10वां मोहर्रम 21 सितंबर को है.

इस्‍लामी मान्‍यताओं के अनुसार इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था. यजीद खुद को खलीफा मानता था, लेकिन अल्‍लाह पर उसका कोई विश्‍वास नहीं था. वह चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाएं.

लेकिन हुसैन को यह मंजूर नहीं था और उन्‍होंने यजीद के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया था. पैगंबर-ए- इस्‍लाम हजरत मोहम्‍मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. जिस महीने हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था.

मुहर्रम मातम मनाने और धर्म की रक्षा करने वाले हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का दिन है. मुहर्रम के महीने में मुसलमान शोक मनाते हैं और अपनी हर खुशी का त्‍याग कर देते हैं.
मान्‍यताओं के अनुसार बादशाह यजीद ने अपनी सत्ता कायम करने के लिए हुसैन और उनके परिवार वालों पर जुल्‍म किया और 10 मुहर्रम को उन्‍हें बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया. हुसैन का मकसद खुद को मिटाकर भी इस्‍लाम और इंसानियत को जिंदा रखना था.
यह धर्म युद्ध इतिहास के पन्‍नों पर हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया. मुहर्रम कोई त्‍योहार नहीं बल्‍कि यह अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है. 
वर्तमान में कर्बला इराक का प्रमुख शहर है जो राधानी बगदाद से 120 किलोमीटर दूर है. मक्‍का-मदीना के बाद कर्बला मुस्लिम धर्म के अनुयायियों के लिए प्रमुख स्‍थान है.
इस्‍लाम की मान्‍यताओं के अनुसार हजरत इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ 2 मोहर्रम को कर्बला पहुंचे थे. उनके काफिले में छोटे-छोटे बच्‍चे, औरतें और बूढ़े भी थे. यजीद ने हुसैन को मजबूर करने के लिए 7 मोहर्रम को उनके लिए पानी बंद कर दिया था.
9 मोहर्रम की रात हुसैन ने रोशनी बुझा दी और कहने लगे, ‘यजीद की सेना बड़ी है और उसके पास एक से बढ़कर एक हथ‍ियार हैं. ऐसे में बचना मुश्किल है. मैं तुम्‍हें यहां से चले जाने की इजाजत देता हूं. मुझे कोई आपत्ति नहीं है.’
जब कुछ देर बाद फिर से रोशनी की गई तो सभी साथी वहीं बैठे थे. कोई हुसैन को छोड़कर नहीं गया.
10 मुहर्रम की सुबह हुसैन ने नमाज पढ़ाई. तभी यजीद की सेना ने तीरों की बारिश कर दी. सभी साथी हुसैन को घेरकर खड़े हो गए और वह नमाज पूरी करते रहे. इसके बाद दिन ढलने तक हुसैन के 72 लोग शहीद हो गए, जिनमें उनके छह महीने का बेटा अली असगर और 18 साल का बेटा अली अकबर भी शामिल था.
बताया जाता है कि यजीद की ओर से पानी बंद किए जाने की वजह से हुसैन के लोगों का प्‍यास के मारे बुरा हाल था. प्‍यास की वजह से उनका सबसे छोटा बेटा अली असगर बेहोश हो गया. वह अपने बेटे को लेकर दरिया के पास गए. उन्‍होंने बादशाह की सेना से बच्‍चे के लिए पानी मांगा, जिसे अनसुना कर दिया गया.
यजीद ने हुर्मल नाम के शख्‍स को हुसैन के बेटे का कत्‍ल करने का फरमान दिया. देखते ही देखते उसने तीन नोक वाले तीर से बच्‍चे की गर्दन को लहूलुहान कर दिया. नन्‍हे बच्‍चे ने वहीं दम तोड़ दिया.
इसके बाद यजीद ने शिम्र नाम के शख्‍स से हुसैन की भी गर्दन कटवा दी. कहते हैं कि हुसैन की गर्दन जब जमीन पर गिरी तो वह सजदे की अवस्‍था में थी.
मुहर्रम खुशियों का त्‍योहार नहीं बल्‍कि मातम और आंसू बहाने का महीना है. शिया समुदाय के लोग 10 मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं.
हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है. मुहर्रम की नौ और 10 तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है.
वहीं सुन्‍नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने में 10 दिन तक रोजे रखते हैं. कहा जाता है कि मुहर्रम के एक रोजे का सबाब 30 रोजों के बराबर मिलता है.
source-indiatv

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