BY– सलमान अली
आज पानी के संरक्षण की बड़ी आवश्यकता है। साथ ही पानी के फिर से इस्तेमाल के तौर तरीके अपनाकर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने में पर्याप्त धन व्यय करने की जरूरत है। ऐसा करना न सिर्फ निवेश से अच्छा लाभ प्राप्त करने जैसा है बल्कि इससे स्वास्थ्य का खर्च घटने से जनता को अधिक उत्पादक बनाने में भी मदद मिल सकती है।
पानी की कमी या अनुपलब्धता से स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित सेवाओं के सुचारू रूप से संचालन पर भी असर पड़ता है। पानी, स्वच्छता व आरोग्य संबंधी सेवाएं पर्याप्त न होने पर अस्पतालों के रोगियों और कर्मचारियों में संक्रमण और बीमारियों का जोखिम बहुत बढ़ जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन/यूनिसेफ के संयुक्त निगरानी कार्यक्रम की रिपोर्ट वॉश इन हेल्थ केयर फैसिलिटी स्वास्थ्य की देखभाल से जुड़े संगठनों में पानी, साफ-सफाई और रोगी के बारे में समग्र वैश्विक आकलन है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस आकलन पर जब आप गौर करेंगे तो आप पाएंगे कि 8 में से 1 स्वास्थ्य संगठन में पानी की सुविधा ही नहीं है और पांच में से एक में स्वच्छता सेवा उपलब्ध नहीं है। इस अव्यवस्था का असर करीब 1.5 अरब से अधिक लोगों पर पड़ता है।
ऐसा अनुमान है कि दुनिया भर में 15 प्रतिशत रोगी अस्पताल में इलाज के दौरान भर्ती होने के कारण किसी ना किसी तरह के संक्रमण का शिकार हो जाते हैं। यह आंकड़ा कम आमदनी वाले देशों में और भी अधिक है।
भारत की अगर बात की जाए तो 2017 में करीब 20 प्रतिशत स्वास्थ्य उपकेंद्र और 4 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में नलों के जरिए पानी की आपूर्ति का इंतजाम ही नहीं था।
पेयजल की उपलब्धता की वैश्विक स्थिति(2015)-
- 2015 में दुनिया की करीब 72% जनसंख्या यानी 520 करोड लोग सुरक्षित पेयजल सेवाओं का उपयोग कर रहे थे।
- बाकी 210 करोड़ यानी 28% लोग सुरक्षित तरीके से प्रबंधित पेयजल सेवाओं के बिना निर्वाह कर रहे थे।
- 130 करोड़ यानी 18% लोग बुनियादी सेवाओं के साथ निर्वाह कर रहे थे मतलब सुधरी हुई जल सेवाओं के बिना रह रहे थे।
- 26 करोड लोग यानी 3.6% सीमित सेवाओं से निर्वाह कर रहे थे उन्हें शोधित जल स्रोत उपलब्ध नहीं था जहां से पानी लाने के लिए आने-जाने में 30 मिनट से अधिक का वक्त लगता था।
- 42.3 करोड यानी 5.8% लोग असुरक्षित जल स्रोतों से पानी की अपनी आवश्यकता पूरी कर रहे थे।
- 15.5 करोड़ यानी 2.2% लोग झीलों, तालाबों, नदियों और जल धाराओं के सतही जल का पानी बिना शोधित उपयोग कर रहे थे।
उपरोक्त आंकड़े 2015 के हैं पिछले 4 सालों में बहुत कुछ बदलाव हो चुका है और बहुत तेजी से बदलाव हो भी रहा है। जिस प्रकार से कारपोरेट घराने जंगलों को साफ कर रहे हैं और सरकार भी उनको साधन मुहैया करा रही है वह 2025 के पहले ही जल संकट की स्थिति को भयावह कर सकती है।
जिस प्रकार यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2025 तक दुनिया की करीब आधी आबादी पानी की किल्लत वाले इलाकों में रह रही होगी वह अभी भी हमारी और आपकी आंखें ना खोले तो इससे ज्यादा भला दुखदाई क्या हो सकता है?
देश में जल के प्रयोग के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली जल की कुल खपत वर्ष 1990 में 552, वर्ष 2000 में 750 और 2010 में 954 घन किमी. थी, अब यह बढ़कर 1050 घन किमी. हो गई है जो 2025 तक बढ़कर 1164 घन किमी. हो जाएगी।
देश की मौजूदा कुल जल खपत 1050 घन किमी. में से 76 प्रतिशत कृषि कार्यों में, 10 प्रतिशत उद्योगों में, 7 प्रतिशत ऊर्जा में, 5 प्रतिशत घरेलू और 2 प्रतिशत अन्य कार्यों में प्रयोग हो रहा है।
उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि कृषि कार्यों में सबसे अधिक जल का उपयोग होता है। वर्ष 1950 में जहां कुल सिंचित भूमि क्षेत्र 2.3 करोड़ हेक्टेयर था, वह अब 3 गुना से अधिक बढ़ गया है। वहीं दूसरी ओर उद्योग, ऊर्जा और घरेलू क्षेत्र में जल की खपत लगातार बढ़ रही।
पिछले एक दशक में औद्योगिक और ऊर्जा क्षेत्र के लिए जल की खपत में 2 गुना की वृद्धि हुई है ऐसे में जल की बढ़ती खपत को पूरा कर पाना एक बड़ी चुनौती है इसका सर्वाधिक दबाव पेयजल आपूर्ति पर पड़ेगा।
दुनिया के लगभग 30 देशों में जल संकट एक बड़ी समस्या बन चुकी है और अगले एक दशक में वैश्विक आबादी के करीब दो तिहाई हिस्से को जल की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ेगा।
भारत में भी जल संकट अब विकराल रूप धारण करता हुआ नजर आ रहा है। वर्ष 1947 के मुकाबले देश में अब तक 35 प्रतिशत पानी समाप्त हो चुका है। 1947 में जहां प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 5150 घन मीटर थी वह 2025 में 1401 घन मीटर रह जाएगी।
भूजल के अनियंत्रित दोहन के कारण देश के 5800 में से करीब 890 ब्लॉक डार्क जोन में आ चुके हैं जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। वर्तमान की स्थिति यह है कि देश का कोई भी हिस्सा जल संकट से अछूता नहीं है। कई शहरों में टैंकर ही जलापूर्ति के एकमात्र साधन बन चुके हैं। इसका ताजा उदाहरण चेन्नई का लिया जा सकता है जहां जल संकट ने भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी है।
भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान के अनुसार घरेलू उपयोग के लिए जल की दैनिक आवश्यकता औसतन 65 लीटर प्रति व्यक्ति होती है। जबकि गलत आदतों और तरीकों के कारण करीब 400 लीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन प्रयोग होता है। यानी कि यदि हम सिर्फ अपनी आदतों को सुधार लें तो हर दिन औसतन 335 लीटर पानी बचा सकते हैं। 335 लीटर पानी देखने में तो ऐसे काफी कम लग रहा है लेकिन जब इसको 130 करोड़ लोगों के साथ गुणा करके देखेंगे तो यह आंकड़ा आपको चौंका देगा।
[mks_social icon=”facebook” size=”35″ style=”rounded” url=”http://www.facebook.com/thefire.info/” target=”_blank”] Like Our Page On Facebook Click Here