NEW DELHI: मनुष्यता की वकालत करने वाले पूर्वांचल गांधी डॉ संपूर्णानंद मल्ल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर आक्रोश व्यक्त करते हुए पूछा है कि जिस देश में 5 किलो अनाज में
जीवन खोजने वाले 80 करोड़ कंगाल एवं 22 करोड़ कुपोषित रहते हों, जिनके पास फूटी कौड़ी न हो उस देश की सरकार द्वारा आटा, चावल, गेहूं, दाल, तेल, चीनी, दही, दूध, दवा,
शिक्षा, चिकित्सा, रेल पर टैक्स लेती हो तो वहां के लोगों का हाल क्या होगा.? इतना ही नहीं रसोई गैस का सिलेंडर भी ₹900 में बेच रही हैं तथा निजी गाड़ियों पर
टोल टैक्स वसूलती हो तो उस देश में जीवन, स्वतंत्रता और संविधान कैसे महफूज रह सकता है? मै ऐसी क्रूर, लुटेरी, अपराधी सत्ता का पतन चाहता हूं.
आज देश में असमानता का आलम यह है कि यहाँ का प्रधानमंत्री नौ हज़ार करोड़ के विमान से चलता है और दूसरी तरफ 120 करोड़ लोग ट्रेनों की बोगियों में भूसे से भरे बोरे की तरह यात्रा करते हैं.
अमीरों, माननीयों के बच्चे दून, DPS में पढ़ते हैं, मेदांता/अपोलो में अपना इलाज करतें हैं और दूसरी तरफ दवा की एक गोली के अभाव में कंगाल और गरीब मर जाते हैं.
देश की विधायिका, कार्यपालिका के माननीय सदस्य चोर, बलात्कारी, अपराधी हों उस देश की रक्षा? पत्थरों में रहने वाला या ‘विधायिका, कार्यपालिका में बैठने वाले भगवान नहीं
बल्कि वह महान किसान और मजदूर कर रहा है जिसके फेफड़े काम करते-करते बेदम हो जाते हैं और रात्रि सूखी रोटी नमक पानी खाकर मर जाता है.
यही हमारा भगवान है जो नहीं जानता है कि लोकतंत्र, सांसद, विधायक या कार्यपालिका, संविधान क्या होता है.? दरअसल आज का युवा बेरोजगारी तथा गरीबी से म्यूट हो चुका है? क्योंकि ‘बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई रूपी अपराध विधायिका, कार्यपालिका के सदस्यों ने पैदा किया है.
अपनी बात को आगे बढ़ते हुए पूर्वांचल गांधी ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि लोकतंत्र में पत्रों का जवाब ना देना जीवन सुरक्षा के मौलिक अधिकार का हनन है.
मेरी तथा मेरे परिवार की कड़ी सुरक्षा किया जाए क्योंकि मेरे लेखन से नफरती चिंटुओं को तकलीफ हो रही है. पत्र की यह कॉपी सुप्रीम कोर्ट, मानवाधिकार आयोग तथा समाजसेवी अन्ना हजारे को भी प्रेषित की गई है.