गोरखपुर: 07, मार्च 2021 को राज्य कर्मचारी परिषद् की आपात बैठक अध्यक्ष रुपेश कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में गोरखपुर कैम्प कार्यालय, हाँसूपुर में संपन्न हुआ
जिसका सञ्चालन मंत्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव ने किया. इसमे माननीय हाई कोर्ट प्रयागराज की पूर्व एवं नई पेंशन वयस्था पर की गई टिपण्णी पर चर्चा हुयी.
बैठक को सम्बोधित करते हुए अध्यक्ष रुपेश कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि- बड़े दुःख की बात है क़ि माननीय सांसदों और विधायकों को बिना किसी नौकरी के एक या एक से अधिक पेंशन दी जा रही है जबकी माननीयो की आर्थिक स्थिति मजबूत है और साथ में कई काम भी करते है.
लेकिन ज़िस कर्मचारी ने 60 वर्षों तक सरकार की निरंतर सेवा किया है उसे जबरजस्ती उसकी इच्छा के विपरीत नई पेंशन स्कीम के तहत पेंशन देने का प्राविधान किया जा रहा है
जो की अनुचित है तथा यह रिटायरमेंट की बाद जीविका चलने के योग्य भी नहीं है. इस व्यवस्था से रिटायर कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है.
अतः सरकार से अनुरोध है क़ि कर्मचारियों के दर्द को महसूस करते हुए इस मामले पर गंभीरता से विचार करे और पुरानी पेंशन वयवस्था को पुनः लागु करे जिससे कर्मचारी समाज का रिटायरमेंट के बाद का भविष्य सुरक्षित हो.
अध्यक्ष रुपेश कुमार श्रीवास्तव एवं मंत्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि माननीय हाई कोर्ट प्रयागराज ने राज्य सरकार से नई पेंशन स्कीम पर पूछा था कि-
जब कर्मचारी सेवा नियमावली में पेंशन की व्यवस्था है तो क्या सरकार इसे प्रशासनिक आदेश से बदल सकती है? क्या सरकार केंद्र की योजना को कर्मचारियों की इच्छा के विपरीत अपना सकती है?
जब सुप्रीम कोर्ट ने अंश दान को वेतन का हिस्सा माना है तो सरकार उसे बिना कर्मचारियों की सहमति से शेयर मार्किट में कैसे लगा सकती है?
शेयर डूबने की स्थति में यदि नुकसान हुआ तो समस्या तब और गंभीर हो जाएगी क्योंकि उसका जिम्मेदार कौन होगा? क्या सरकार न्यूनतम पेंशन तय करने पर विचार करेगी?
माननीय हाई कोर्ट प्रयागराज ने ये भी कहा था कि योजना बाध्यकारी नहीं थी तो बिना कर्मचारियों की सहमति से राज्य सरकार ने क्यों अपनाया?
क्या सरकार अन्य विभागो के अधिकारियों, सांसदों, विधायकों के अंशदान को भी शेयर मार्किट में लगाएगी? कोर्ट ने यहां तक कहा कि नई पेंशन स्कीम अच्छी है तो
इसे सांसदों और विधायकों की पेंशन पर क्यों नहीं लागू किया जाता है? कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा था कि पुरानी पेंशन स्कीम की मांग मानने में क्या कठिनाई है?