BY-THE FIRE TEAM
बैंक इस समय नॉन परफोर्मिंग असेस्ट्स (एनपीए) की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके चलते वो डूबने की कगार पर आ गए हैं। मोदी सरकार को इसका ज़िम्मेदार बताया जा रहा है। और अब ये बात रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) ने भी कबूल ली है।
द वायर द्वारा आरटीआई के एक जवाब में आरबीआई ने कबूला है कि फरवरी 2015, में तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने चिट्ठी लिखकर प्रधानमंत्री कार्यालय सहित वित्त मंत्रालय को लोन ना चुकाने वाले लोन डिफॉल्टरों की सूची भेजी थी।
गौरतलब है कि संसदीय समिति को लिखे गए अपने पत्र में रघुराम राजन ने कहा था कि उन्होंने पीएमओ को एनपीए के बड़े घोटालेबाज़ों की सूची सौंपी थी और गंभीरतापूर्वक जांच की मांग की थी।
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लेकिन पीएमओ से लेकर वित्त मंत्रालय ने उस पर गौर करना ज़रूरी नहीं समझा और उसका खामियाज़ा अब देश के बैंक भुगत रहे हैं।
एन.पी.ए बैंकों का वो लोन होता है जिसके वापस आने की उम्मीद नहीं होती। इस कर्ज़ में 73% से ज़्यादा हिस्सा उद्योगपतियों का है।
अक्सर उद्योगपति बैंक से कर्ज़ लेकर खुद को दिवालिया दिखा देते हैं और उनका लोन एन.पी.ए में बदल जाता है। यही उस लोन के साथ होता है जिसे बिना चुकाए नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोग देश छोड़कर भाग जाते हैं।
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सरकारी बैंकों के एन.पी.ए में भी पिछले कुछ सालों में इसी तरह का बढ़ोतरी देखी गई है। रिज़र्व बैंक ने बताया है कि मार्च 2018 में एनपीए 10.40 लाख करोड़ पहुँच चुका है। जबकि 2013-14 में ये 2 लाख 40 हज़ार करोड़ था। देश में लगभग 90% एन.पी.ए सरकारी बैंकों का ही है।
देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सामूहिक शुद्ध घाटा 2017-18 में बढ़कर 87,357 करोड़ रुपये हो गया। ये भारत के इतिहास में सबसे ज़्यादा है।