BY–SAEED ALAM
डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, देश के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 – 1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे।
उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। उनका जन्मदिन (5 सितम्बर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सचमुच,आज का दिन बड़ा ही गर्व और हर्ष उल्लास का है क्योंकि आज ही के दिन डॉक्टर राधाकृष्णन जिनकी भारत में पहचान शिक्षक,राजनेता और विचारक के रूप में है तथा जिन्होंने अपने समर्पण और त्याग के द्वारा विद्यार्थियों का जीवन उज्जवल बनाने का सदैव प्रयास किया.
शिक्षा ही सभी प्रकार की रूढ़ मान्यताओं को उखाड़ फेंकने का एक प्रबल माध्यम है,यह तथ्य उन्हें भलीभांति ज्ञात हो गया था.
शिक्षा ही वह तत्व है जो हमें पशु से मनुष्य बनाती है तथा हमारे अंदर जिज्ञासा का भाव पैदा करके हमें नए सिद्धांतों के सृजन के लिए प्रेरणा देती है.
डॉक्टर राधाकृष्णन ने समूचे विश्व को एक इकाई रूपी विद्यालय माना. शिक्षा के द्वारा ही मानवता को स्थापित और मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है.अतः पूरे विश्व को एक इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए.
ब्रिटेन के एडिनबरा यूनिवर्सिटी मैं दिए गए अपने भाषण में राधाकृष्णन ने कहा था- मानव को एक होना चाहिए, मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है .
यह तभी संभव है जब देशों की नीतियों का आधार पूरे विश्व में एक हो .शांति की स्थापना करने का प्रयत्न,अपनी बुद्धि से परिपूर्ण व्याख्याओं,आनंददाई अभिव्यक्तियों और हल्की गुदगुदाने वाली कहानियों से वह छात्रों को मंत्रमुग्ध कर देते थे.
उन्होंने सदैव उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारने की प्रेरणा छात्रों को दिया.
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में शिक्षक का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है.यही वजह की उसे भगवन से भी ऊँचा स्थान दिया गया है. एक बड़े संत कबीरदास ने लिखा है-
गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काकू लागें पांय I
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविन्द दियो बताय II
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में शिक्षकों के चरित्र ने विद्यार्थियों को हमेशा बल दिया है किन्तु आज समाज में कुछ ऐसे भी अध्यापक सामने आये हैं जिनकी वजह से छात्र -शिक्षक सम्बन्ध शर्मशार हुए हैं.
हमें ऐसे लोगों से बचने का प्रयास करना चाहिए साथ ही वैसे शिक्षकों को सम्मानित करना चाहिए जिनके वजह से छात्रों ने कई उचाईयों को छुवा है और निरन्तर इस और अग्रसर हैं.
यदि हम राधाकृष्णन के वक्तित्व को अपनाये तो निश्चित तौर पर भारत प्रगति पथ की और बढ़ सकेगा.जरुरत इस बात की है की इसे दृढ़ता के साथ लागु किया जाये.