‘हमारे बच्चे दलित महिला द्वारा बनाया खाना कभी नहीं खाएंगे’: जातिगत भेदभाव की कहानी


BY- THE FIRE TEAM


एम अन्नालक्ष्मी को मदुरै कलेक्टर से अपॉइंटमेंट लेटर मिलता है जिससे उन्हें उनके ही गांव वालयापट्टी में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में नियुक्ति मिलती है।

आम अन्नालक्ष्मी अनुसूचित जाति (दलित) समुदाय से आती हैं, अन्नालक्ष्मी की नियुक्ति एक रसोइयां और आंगनवाड़ी केंद्र में एक सहायक के रूप में होती है लेकिन उनका तबादला अगले ही दिन दूसरे गांव जो पास में है, किलवनरी में कर दिया जाता है।

जिला प्रशासन द्वारा सिर्फ अन्नालक्ष्मी का ही नहीं बल्कि एक और महिला ज्योतिलक्ष्मी (दलित समुदाय) जो वालयापट्टी केंद्र में खाना पकाने की देखरेख की प्रभारी थी, का तबादला मादीपनूर कर दिया जाता है।

जिला प्रशासन ने ये कदम लोगों के डर और दबाव में उठाया क्योंकि गांव के लोगों ने शिकायत की थी कि उनके बच्चे दलित महिला द्वारा बनाया हुआ खाना नहीं खाएंगे

अन्नलक्ष्मी ने बताया, “गाँव के लोग तिरुमंगलम तालुक के आईसीडीएस कार्यालय गए और उन्होंने अपनी शिक़ायत की, कि उनके बच्चे एक दलित महिला द्वारा बनाया गया खाना कभी नहीं खाएँगे।”

जिन लोगों ने शिकायत की उनका कहना था कि दोनों महिलाएं दलित समुदाय की हैं और इनके द्वारा बनाया गया खाना प्रदूषित है, अछूत है। आज केे समय में भी छुआछूत व्यापक स्तर पे समाज में मनाई जा रही है जिसका जीता जागता उदारहण है ये।

प्राप्त खबर के अनुसार, 8 जून को इलाके की दलित कॉलोनी में उच्च जाति के लोगों द्वारा काफी हिंसात्मक घटनाएं करी गईं।

 

घायलों और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उनके घरों को तोड़ा गया, आग लगाई गई, वाहनों को भी तोड़ा फोड़ा गया साथ ही उनके जानवरों और मवेशियों को भी नही बक्शा गया उनपर भी हमला किया गया।

ज्योतिलक्ष्मी ने काफी दुःख प्रकट करते हुए कहा, “कितने दुख की बात है कि हमारी जाति की वजह से हमें अपने ही गांव में काम नहीं करने दिया जा रहा है।”

ज्योतिलक्ष्मी ने बताया, “मैं मेडिकल परीक्षा के बाद जारी प्रमाण- पत्र जमा करने कर्यालय गयी लेकिन वहां अधिकारियों ने कहा कि मेरे ही गांव की महिलाओं ओर पुरुषों ने मेरी नियुक्ति का विरोध किया है।”

उन्होंने बताया, “बकौल अधिकारियों ने मुझे बताया कि मेरे गांव के पुरुषों और महिलाओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे दलित महिलाओं द्वारा बनाया खाना ना खुद खाएंगे ना ही अपने बच्चों को खाने देंगे।”

ज्योतिलक्ष्मी ने बताया कि उन्हें 4 जून को गाँव की आंगनवाड़ी में कार्य शुरू करने के लिए कहा गया था।

ज्योतिलक्ष्मी और अन्नलक्ष्मी के अनुसार, ये सब परेशानियां तब शुरू हुईं जब अप्रैल महीने में स्थानीय मुथलम्मन मंदिर उत्सव में पूजा करने की अनुमति नहीं दी गई।

उन्होंने बताया, “उच्च जाति के पुरुषों ने हमें मंदिर के बाहर तक नारियल तोड़ने की अनुमति नहीं दी।”

ज्योतिलक्ष्मी ने कहा, “जब 3 जून को मेरा अप्वाइंटमेंट लेटर आया, तो उन्होंने मुझे वहां काम करने से मना कर दिया। इससे मुझे काफी दु:ख हुआ।”

उन्होंने बताया कि वो अलपलाचेरी से मधेपुरा जाने वाली बस को पकड़ने के लिए उन्हें 1.5 किमी पैदल चलना पड़ता है तब वे बस पकड़ पाती हैं।

ज्योतिलक्ष्मी ने कहा, “मैं 18 साल की उम्र से ही इस नौकरी के लिए कोशिश कररही थीं और शुरू से ही बच्चों को पढ़ाने का मेरा सपना था।”

दोनों महिलाओं ने कहा कि सांप्रदायिक तनाव के चलते और उनके दलित होने की वजह से उनका तबादला किया गया जिसकी वजह से उन्हें मानसिक तनाव का भी सामना करना पड़ा।

सवाल हुए उन्होंने कहा, “हम क्या कर सकते हैं, लेकिन यह सब बहुत बुरा लगता है की हमारे दलित होने की वजह से इस तरह का भेदभाव किया जाता है। क्या हमारा दलित होना गुनाह है?”


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