BY- सुशील भीमटा
वाजीव है वजह आवाम की दहशत नें वतन जलाकर आजादी का एहसास और अमनों छीन लिया,
गैरों में दम कहां जब अपनों नें ही वतनपरस्ती से मूँह मोड़ लिया।
कौड़ियों में ईमान का सौदा होता दिखता है यहां,शौहरत की बुलंदियां तो छू ली मगर फुटपातों पर गरीब हिन्दोस्तानी सोता दिखता यहां।
आजाद किया गया वो 14 अगस्त 1947 वतन का हिस्सा नासूर बन गया।आजादी से अब तक गरूर के सरूर में उसका तो हमारे आगे सीना तन गया।
दिखाता है सीना तना हुआ वो गद्दार, हर बार पीठ पर वार कर जाता है।
-काश्मीर में 35 A की आड़ लिए सरहद पार बार बार चला आता है।
भूल थी बड़ी आजादी के बाद की जो 17 नवम्बर 1956 में काश्मीर को खुला छोड़ दिया।
उससे भी ज्यादा भूल थी, जख्म देता रहा सदियों और सियासत नें मूँह मोड़ लिया।
वो राख हुए वतन को टुकड़ो में बिखेरकर जिनके अपनें सियासी मनसूबे थे।
विरासत मिली जिनको वतन की वो भी आज तक सियासत के नशे में डूबे थे।
अब नींद खुली, जागे तो हैं, देखें खुली आँखों से कितना, और क्या दिखाते हैं-?
मिटाते हैं 35 A को और क्या देश में एक सा कानून लाते हैं?
कुछ फर्ज आवाम को भी आज वतनपरस्त बनकर निभानें होंगे।
देश भक्ति के सलीके कुछ अंधभक्तों को सीना ठोककर सिखाने होंगे।
आवाम की आवाज से ही वतन में इस आतंक के निपटारे का सॉज बजेगा।
गूंजेगा हर हिस्सा वतन का वतनपरस्ती के अल्फाजों से बेनकाब होगी सियासत, पर्दा उठेगा इसके राजों से।
सुशील भीमटा