भारत बन्द और किसान आन्दोलन के विभिन्न पक्ष जिनकी चर्चा की जानी चाहिए

विपक्ष का आन्दोलन करना स्वस्थ लोकतंत्र की जरुरत है लेकिन उसका उद्देश्य सकारत्मक हो तो परिणाम भी सकारात्मक होगा. वस्तुत: आज का भारत बन्द का प्रयास कितना सार्थक रहा यह विचारणीय है,

क्योंकि भारत पिछ्ले एक वर्षों से त्रादशी की मार झेल रहा है. कभी करोना तो कभी बाढ़ तो कभी कुछ, आज किसानों के समर्थन में विपक्षी दलों द्वारा किसान आन्दोलन का समर्थन किया गया

जो पार्टियों की मूल अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दर्शाता हैं. लेकिन क्या समर्थन का अभिप्राय उग्र प्रदर्शन करना है. शायद इसके लिए हमे पूर्व के आंदोलनों पर भी नज़र डालने की जरुरत है.

जय जवान, जय किसान का नारा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री लाबहादुर शास्त्री जी द्वारा भारतीय किसानों को 1965 में उनके सम्मान में दिया था, तब सब पार्टियां लगभग एक साथ जय जवान, जय किसान के नारे लगाते दिखाई देते थे.

आज स्थिति बिलकुल विपरीत है, जय जवान, जय किसान के बीच राजनैतिक रोटियां ज्यादा सेकी जा रही है. किसानों को सहायता पहुंचाने के बजाए उन्हें राजनैतिक शिकार होना पड़ रहा है.

Jan 8 'Bharat Bandh' call: Here's all you need to know about key participants and demands

1936 में जब स्वामी सहजानंद जी ने भारतीय किसान सभा की स्थापना की तो उसका मकसद शांति पूर्ण तरीके से जमींदारों से गरीब किसानों को उनका हक दिलाना था जो उसके वास्तविक हकदार थे.

ठीक उसके विपरीत आज किसानों को कुछ दल उन्हें उनके हक से महरूम करने पर अडिग हैं. स्वामी सहजानंद सरस्वती को किसान आंदोलन का प्रणेता भी कहा जाता हैं.

Barnala farmer with amputated arm and leg joins protest against Agriculture Bill 2020 | AMRITSAR NYOOOZ

आज किसानों द्वारा किए गए शांति पूर्ण प्रदर्शन से सरकार को एवं किसानों को मुद्दों से भरमाने की भरपूर कोशिश की जा रही है जिससे किसानों सहित देश का नुकसान होना माना जा सकता है.

सभी राजनैतिक दलों को इस विधेयक को समझकर देश हित में निर्णय लेना चाहिए क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य विधेयक से किसानों के बीच आत्मनिर्भरता बढ़ाने की कोशिश है ताकि वे अपना उत्पाद सीधा बाज़ार में ले जा सकें.

वहीं किसान मूल्य अनुबंध विधेयक से भी कोई नुक़सान नहीं होता दिखता है, क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का कॉन्सेप्ट भारतीय गांव में पहले भी देखा गया है.

तीसरा कानून जो आवश्यक वस्तु विधेयक है, इसमें किसानों द्वारा थोड़ा कयास लगाया जा रहा है कि किसके पास कितना अनाज है, यह पता करना मुश्किल हो सकता है.

उक्त बातें विचारणीय हैं जिसका समाधान आन्दोलन नहीं आपसी समर्थन है. आंदोलन को समर्थन देना अच्छी बात है परन्तु अभिव्यक्ति की इस आजादी से किसानों का भला कैसे संभव होगा.?

ऐसे आंदोलन से युवा भारत के सामने एक और प्रश्न उत्पन होता है कि क्या आंदोलन इसे ही कहते हैं.?

(Dr. Amit Mishra ये लेखक के निजी विचार हैं)

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