BY- THE FIRE TEAM
आपने पीहू फिल्म तो जरूर देखी होगी ? देखा नहीं तो सुना जरूर ही होगा। वही जो अकेले घर में मौके की नजाकत से अनजान जद्दोजहद करते हुए मौत के गोद में सो जाती है। आज हम बात कर रहे हैं उस पीहू की जिसे विनोद कापड़ी गोद लेना चाहते थे। राजस्थान की ये पीहू भी गोद लेने के सख्त नियमों की भेंट चढ़ गई। ये वही पत्रकार, लेखक और निर्देशक हैं जिन्होंने पीहू, मिस टनकपुर हाजिर हों जैसी फिल्में बनाईं हैं।
यह खबर राजस्थान के नागौर की है जहां 27 दिन पहले कूड़े के ढेर में यह बच्ची मिली थी। जिसकी जयपुर के जेके लोन अस्पताल में मौत हो गई। इस बच्ची को विनोद कापड़ी गोद लेना चाहते थे लेकिन बच्ची उन्हें नहीं मिल पाई। वे पत्नी साक्षी जोशी के साथ नागौर गए और जयपुर भी गए, और तमाम औपचारिकताएं भी पूरी की। मगर कानूनी पेंच के कारण बच्ची उन्हें नहीं मिली।
कूड़े के ढेर से नागौर के अस्पताल, और फिर जोधपुर अस्पताल में उसका इलाज चला । तबीयत बिगड़ती गई फिर उसे जयपुर के जेके लोन अस्पताल लाया गया तब तक हालत और क्रिटिकल हो गई थी । और अंत में उसने दम तोड़ दिया।
विनोद और उनकी पत्नी का सरकार और कानूनविदों से एक ही सवाल है : एक नवजात को भी सरकार सिर्फ एक फाइल समझती है कि जैसे फाइल आगे बढ़ती रहती है बच्चे भी बढ़ जाएंगे?
न जाने ऐसे कितने नवजात लावारिस होने के नाते कानून और लापरवाही की भेंट चढ़ जाते हैं। क्या गोद लेने के सख्त कानून में बदलाव नहीं होना चाहिए?
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