BY–THE FIRE TEAM
किसी भी कंप्यूटर प्रणाली से सूचनाएं निकालने, उनकी निगरानी और कूट भाषा का विश्लेषण करने के लिये 10 केन्द्रीय एजेन्सियों को अधिकृत करने संबंधी अधिसूचना को चुनौती देते हुये सोमवार को उच्चतम न्यायालय में दो जनहित याचिकायें दायर की गयीं।
ये जनहित याचिकायें अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और अधिवक्ता अमित साहनी ने दायर की हैं। इन याचिकाओं में सरकार की 20 दिसंबर की अधिसूचना को चुनौती देते हुये न्यायालय से इसे निरस्त करने का अनुरोध किया गया है।
दोनों याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ये अधिसूचना ‘असंवैधानिक’ है और ‘निगरानी की खुली छूट’ कानून की दृष्टि से गलत है।
पीटीआई को गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि सरकार की अधिसूचना के अनुसार, 10 केन्द्रीय जांच एजेन्सियों को सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत कंप्यूटर इंटरसेप्ट करने और उसकी सामग्री का विश्लेषण करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
इस अधिसूचना में शामिल एजेन्सियों मे गुप्तचर ब्यूरो, मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (आय कर विभाग के लिये), राजस्व गुप्तचर निदेशालय, केन्द्रीय जांच ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेन्सी, रॉ, सिग्नल गुप्तचर निदेशालय (जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम के क्षेत्रों के लिये) और दिल्ली के पुलिस आयुक्त शामिल हैं।
शर्मा ने अपनी याचिका सुनवाई के लिये शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था लेकिन शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि इस पर सामान्य प्रक्रिया के तहत ही सुनवाई होगी।
साहनी ने वकील प्रीति सिंह के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया है कि निजता के अधिकार के बारे में नौ सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले के आलोक में सरकार की 20 दिसंबर की अधिसूचना निरस्त करने योग्य है।
इस याचिका में कहा गया है कि जांच एजेन्सियों को खुली छूट देने का 20 दिसंबर का आदेश आमजनता के खिलाफ है और यह बगैर किसी तर्क के जारी किया गया है। याचिका के अनुसार यह कानून की नजर में भी गलत है, इसलिए इसे निरस्त किया जाना चाहिए।
साहनी की याचिका में इस आदेश को ‘अलोकतांत्रिक और नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात’’ बताया गया है।
शर्मा ने अपनी याचिका में इन एजेन्सियों को इस अधिसूचना के आधार पर सूचना प्रौद्योगिकी कानून के प्रावधानों के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही करने या जांच शुरू नहीं करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया है।
इस याचिका में दावा किया गया है कि अधिसूचना का मकसद अघोषित आपातस्थिति के तहत आगामी आम चुनाव जीतने के लिये राजनीतिक विरोधियों, विचारकों और वक्ताओं का पता लगाकर पूरे देश को नियंत्रण में लेना है। याचिका में कहा गया है कि हमारे देश का संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि निगरानी की खुली छूट देने के गृह मंत्रालय के इस आदेश का निजता के मौलिक अधिकार की कसौटी पर परीक्षण किया जाना चाहिए।
केन्द्रीय जांच एजेन्सियों को किसी भी कंप्यूटर की निगरानी करने या इंटरसेप्ट करने का अधिकार देने के सरकार के कदम की राजनीतिक दलों ने तीखी आलोचना की है और उनका आरोप है कि केन्द्र ‘निगरानी राज्य’ (सर्विलान्स स्टेट) बनाने का प्रयास कर रहा है।
हालांकि, केन्द्र सरकार का कहना था कि ये नियम कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने 2009 में बनाये थे और नये आदेश में सिर्फ उन प्राधिकारों को अधिसूचित किया गया है जो यह कार्रवाई कर सकते हैं।