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किसी समुदाय को सालों तक स्कूल, ऑफिस और मोहल्ले से लेकर टीवी बहसों तक लगातार अपमानित और प्रताड़ित करना हिंसा है.

उनके खानपान, पोशाक और भाषा से लेकर धर्म उनके धर्म, पवित्र धर्मग्रंथ और नबियों पर भद्दी टिप्पणियां करना हिंसा है.

देश के प्रति उनकी निष्ठा पर शक करना हिंसा है. फर्ज़ी धर्म संसदों में जेनोसाइड की कॉल देना और मंत्री द्वारा गोली मारो सारों को का नारा लगाना भी हिंसा है.

किसी समुदाय को बार-बार उकसाना, उनके सब्र का इम्तिहान लेना हिंसा है. भड़क कर पत्थर फेंकना हिंसा है.

भीड़ में अपने लोगों को शामिल करवा कर पत्थर फिंकवाना उससे भी बड़ी और नीचतापूर्ण हिंसा है. हिरासत में पिटाई करना उससे बड़ी पुलिसिया हिंसा है.

निर्दोष बच्चों को गिरफ्तार करना और भी बड़ी हिंसा है, उन्हें ज़मानत न मिलना जुडीशियल हिंसा है. क़ानूनी कार्रवाई के बजाए बुल्डोजर से न्याय करना और एक समुदाय के दंगाइयों को पुलिस और सरकार का संरक्षण मिलना हिंसा है.

इसके बाद जो पीड़ित हो, उसी के ख़िलाफ़ माहौल बनाना ओछी पत्रकारीय हिंसा है. पत्थर को बम की तरह पेश करके दिन भर ख़बर चलाना हिंसा है.

दो-चार जगह की घटनाओं को पूरे देश का माहौल बताना हिंसा है. पहले समझाना, फिर डराना, फिर लाठी, फिर आंसू गैस या पानी की बौछार,

फिर हवाई फ़ायर, फिर चेतावनी का क्रम अपनाने के बजाए सीधे गोली चलाना, वह भी घुटनों के बजाए सीने पर यह तो सीधी सरकारी हिंसा है.

ऐसा करने वाले पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को सख़्त दंड न मिलना भी जानबूझ कर की गई हिंसा है. इसमें से किसी भी प्रकार की हिंसा का समर्थन करना भी हिंसा है.

उसमें शामिल होना तो हिंसा है ही. इसलिए हिंसा की निंदा कीजिए, तो हर तरह की हिंसा की निन्दा कीजिए, जितनी बार हिंसा हो, निंदा कीजिए.

जितनी बड़ी हिंसा हो, उतनी ज़ोर से निंदा कीजिए और हां, सिर्फ़ हिंसा की निंदा ही नहीं, हिंसा को रोकने की कोशिश भी कीजिए

(DISCLAIMER-यह लेखक के निजी विचार हैं. AB NEWS की टीम का इससे कोई सरोकार नहीं है)

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