BY- THE FIRE TEAM
उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में एक प्राथमिक स्कूल में मिड डे मील के लिए कुछ छात्र अपने घर से थाली लेकर आते हैं और एससी/एसटी तथा दलित समुदाय के छात्रों से अलग बैठकर खाना खाते हैं।
स्कूल के एक छात्र ने बताया, “कोई भी स्कूलों में उपलब्ध प्लेटों में भोजन कर सकता है, इसलिए हम घर से अलग प्लेटें लाते हैं।”
रामपुर प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य पी गुप्ता ने कहा कि स्कूल के अधिकारियों द्वारा छात्रों से ऐसा न करने के लिए कहने के बावजूद यह प्रथा जारी है।
प्रधानाचार्य पी गुप्ता ने बताया, “हम छात्रों को एक साथ बैठने और खाने के लिए कहते हैं लेकिन जैसे ही हम जाते हैं वे अलग-अलग तरीके से जाते हैं। हो सकता है कि उन्होंने इसे घर से सीखा हो।”
उन्होंने बताया, “हमने उन्हें यह सिखाने की बहुत कोशिश की है कि वे सभी समान हैं लेकिन उच्च जाति के छात्र निचली जाति के लोगों से दूर रहने की कोशिश करते हैं।”
जाहिर है कि इतने छोटे बच्चों में जातिगत भेदभाव की भावना का पनपना उनकी खुद की सोच नहीं हो सकती या तो घर या समाज के लोगों को देखकर उन्होंने यह सीखा होगा।
जातिवाद समाज के लिए एक ऐसा विष है जो समाज की जड़ों को खोखला कर रहा है लेकिन फिर भी जातिगत भावना खत्म होने की जगह बढ़ती हुई नजर आ रही है।
छोटे-छोटे बच्चों से लेकर समाज के बड़े और जिम्मेदार व्यक्तियों में भी यह भावना अक्सर देखने को मिल जाती है।
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