(सईद आलम खान, ब्यूरो चीफ गोरखपुर)
केंद्र सरकार के द्वारा लगातार सरकारी संस्थानों को निजी हाथों में सौंपते जाने को लेकर यहाँ कुछ तर्क दिए गए हैं. इस पर विचार करें….
देश के सबसे अच्छे अस्पताल का नाम मेदांता नहीं एम्स है जो सरकारी है. सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम IIT है जो सरकारी है.
सबसे अच्छे मैनेजमेंट कॉलेज का नाम IIM है जो सरकारी है, देश के सबसे अच्छे विद्यालय केन्द्रीय विद्यालय हैं जो सरकारी है.
देश के एक करोड़ लोग अभी या किसी भी वक़्त अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए सरकारी रेल में बैठते हैं, नासा को टक्कर देने वाला ISRO अम्बानी नहीं सरकार के लोग चलाते हैं.
सरकारी संस्थाएँ फ़ालतू मे बदनाम हैं, अगर इन सारी चीज़ों को प्राइवेट हाथों में सौंप दिया जाए तो ये सिर्फ़ लूट खसोट का अड्डा बन जाएँगी.
निजीकरण एक व्यवस्था नहीं बल्कि नव रियासतीकरण है, निजीकरण से बेरोजगारी बढेगी जो सरकारी संस्थान 1 लाख लोगो को रोजगार दे रहा है वो निजी हाथो मे ज़ाते ही
15 -20 हजार से काम करायेंगे मतलब 80% लोग बेरोजगार होंगे. अगर हर काम में लाभ की ही सियासत होगी तो आम जनता का क्या होगा?
कुछ दिन बावाली-रियासतीकरण वाले लोग कहेगें कि देश के सरकारी स्कूलों, कालेजों, अस्पतालों से कोई लाभ नहीं है. अत: इनको भी निजी हाथों में दे दिया जाय तो जनता का क्या होगा ?
अगर देश की आम जनता प्राइवेट स्कूलों और हास्पिटलों के लूटतंत्र से संतुष्ट है तो रेलवे, बैंकों एंव अन्य सरकारी संस्थाओं को भी निजी हाथों में जाने का स्वागत करें.
हमने बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए सरकार बनाई है न कि सरकारी संपत्ति मुनाफाखोरों को बेचने के लिए, अगर प्रबंधन सही नहीं तो सरकार सही करे, भागने से तो काम नही चलेगा.
निजिकरण एक साजिश है कि पहले सरकारी संस्थानों को ठीक से काम न करने दो, फिर बदनाम करो, जिससे निजीकरण करने पर कोई बोले नहीं,
फिर धीरे से अपने आकाओं को बेच दो, जिन्होंने चुनाव के भारी भरकम खर्च की फंडिंग की है. याद रखिये पार्टी फण्ड में गरीब मज़दूर, किसान पैसा नही देता,
पूंजीपति देता है. पूंजीपति दान नहीं देता, निवेश करता है जो चुनाव बाद मुनाफे की फसल काटता है. आइए विरोध करें निजीकरण का तथा सरकार को अहसास कराएं कि अपनी जिम्मेदारियों से भागे नहीं, सरकारी संपत्तियों को बेचे नहीं.
विचार करें कि किसी सरकारी संस्था में घाटा है तो व्यापारी खरीद क्यों रहा है और लाभ में है तो सरकार बेच क्यों रही है.
70 वर्षों में देश के हर व्यक्ति का इन संस्थानों को बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
अगर कहीं घाटा है तो प्रबंधन ठीक से करें न कि उन्हें बेच दें…जय जवान, जय किसान. देश बचेगा तो राजनीति भी बचेगी अगर देश ही बिक जायेगा तो राजनीति कहाँ करेंगे.?
(जनहित में जारी…)