आरक्षण दिवस की शुरुआत और उसके मायने…

26 जुलाई यानि कि आरक्षण दिवस, आज से 118 साल पहले 26 जुलाई 1902 में कोल्हापुर नरेश छत्रपति शाहूजी महाराज द्वारा ज्योतिबा फुले के ‘आनुपातिक आरक्षण’ से प्रेरणा लेते हुए सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य से

पहली बार आधिकारिक शासनादेश के रूप में शुद्रों तथा अति शूद्रों सहित सभी गैर ब्राह्मणों के लिए 50 फ़ीसदी आरक्षण का ऐलान किया था.

इसी आरक्षण की वजह से वर्णवादी व्यवस्था से शोषित समाज के दबे, कुचले, पिछड़े बहुजन समाज को भागीदारी मिलने का सिलसिला शुरू हो सका.

गौरतलब है कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां पर धार्मिक ठेकेदारों के व्यवहार में ही नहीं बल्कि धर्म शास्त्रों में भी यहां की बहुसंख्यक आबादी को उसके मूलभूत अधिकार जैसे की शिक्षा, संपत्ति, शास्त्र, स्वाभिमान, सम्मान आदि से वंचित रखने को जायज माना गया है.

बहुजन समाज को छत्रपति शाहूजी महाराज द्वारा पहली बार शिक्षा, संपत्ति तथा आत्म सम्मान का अवसर मिला था. त्रावणकोर रियासत में बहुसंख्यकों के साथ भर्ती में किए जा रहे भेदभाव के खिलाफ सरकारी नौकरियों में आरक्षण की जबरदस्त मांग उठी थी.

बड़ौदा और मैसूर की रियासतों में आरक्षण 1902 से पहले से ही था लेकिन तब आरक्षण किसी व्यापक दृष्टिकोण तथा शासनादेश के रूप में नहीं था. इसीलिए 26 जुलाई बहुजन समाज के लिए सामाजिक परिवर्तन आंदोलन का एक ऐतिहासिक दिन है.

ज्योतिबा राव फुले के अनमोल विचार ...

ऐसा भी नहीं है कि 1902 से पहले आरक्षण के विषय पर चर्चा विमर्श नहीं हुआ था. सर्वप्रथम सामाजिक क्रांति के अग्रदूत ज्योतिबा फुले ने 1869 में आरक्षण की जरूरत बताई थी. आगे चलकर 1882 में गठित हंटर कमीशन के समक्ष ज्योतिराव फुले ने नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ सरकारी नौकरियों में सभी के लिए आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की मांग की.

हमें एक बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि ज्योतिबा फूले ने आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की वकालत की थी. ज्योतिबा फुले का मानना था कि आनुपातिक आरक्षण के मांग अपने आप में सामाजिक न्याय को स्थापित करने की दिशा में बहुत ही क्रांतिकारी कदम है.

Communal Award, Poona Pact & Government of India Act of 1935 ...

यह प्रकृति का नैसर्गिक सिद्धांत है कि हर व्यक्ति को उसकी अनुपातिक हिस्सेदारी मिले. यह न्याय की सबसे सरल तथा सहज अवधारणा भी है. उदाहरण के तौर पर जैसे कि एक मां के अगर तीन बेटे हैं तो नैसर्गिक सिद्धांत यही कहता है कि जमीन तीन हिस्सों में बांटी जानी चाहिए.

चूंकि बड़ा बेटा पढ़ा लिखा है डिप्टी कलेक्टर है और छोटा बेटा अनपढ़ है, मजदूर है, इसलिए बड़े बेटे की योग्यता को ध्यान में रखते हुए उसे ज्यादा संपत्ति दिया जाना तथा छोटे बेटे के कम योग्यता को ध्यान में रखते हुए उसे कम संपत्ति दिया जाना न्यायसंगत कभी नहीं कहा जा सकता है.

अवसर में समानता के बढ़ते कदम…

अवसर में समानता के सिद्धांत को स्वीकारते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने 1908 में भारत की अनेक जातियों को आरक्षण उपलब्ध कराने का निर्णय लिया. आगे चलकर आरक्षण को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करते हुए भारत सरकार अधिनियम-1909 में विधिवत कानूनी जामा बनाया गया.

क्रियान्वयन में सुधार करते हुए भारत सरकार अधिनियम-1919 में भी आरक्षण का प्रावधान किया गया, गोलमेज सम्मेलन में बाबासाहेब आंबेडकर ने अछूतों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल की मांग किया था लेकिन गांधी ने बाबासाहेब आंबेडकर की मांग का विरोध करते हुए यह ऐलान किया कि वह अछूतों को पृथक निर्वाचक मंडल नहीं देने देंगे.

अंततः गांधी द्वारा आमरण अनशन का ऐलान किए जाने पर बाबासाहेब आंबेडकर को पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया. पूना पैक्ट में राजनीतिक आरक्षण का प्रावधान किया गया,

हक और अधिकारों के इस कड़ी में भारत सरकार अधिनियम-1935 में दिए गए आरक्षण तथा कैबिनेट मिशन-1946 की अनुपातिक आरक्षण संबंधित सिफारिश भी उल्लेखनीय है.

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