सड़क से सलाखों तक-मऊ में हुए ‘नागरिकता आंदोलन’ पर रिहाई मंच की रिपोर्ट

  • होर्डिंग, गैंगेस्टर, गुंडा एक्ट, जिलाबदर, रासुका से लड़ता-भिड़ता मऊ
  • नागरिकता आंदोलन के एक साल: मऊ में हुए जोर-जुल्म़ पर रिहाई मंच की रिपोर्ट

लखनऊ 16 दिसंबर, 2020. रिहाई मंच ने नागरिकता आंदोलन के एक वर्ष पूर्ण होने पर रिपोर्ट जारी करते हुए मऊ में रासुका के तहत कैद लोगों की रिहाई की मांग की.

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि दिसंबर 2019 में नागरिकता कानूनों में संशोधन के खिलाफ असम में विरोध शुरु हुआ. इसके बाद जामिया मिलिया विश्वविद्यालय,

दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान छात्र-छात्राओं पर पुलिसिया दमन हुआ. इसके खिलाफ 15 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी विरोध हुआ.

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इसी कड़ी में 16 दिसंबर को मऊ शहर में भी व्यापक तौर पर विरोध दर्ज किया गया, यूपी में मऊ पहला जिला था जहां से आम जनता इस असंवैधानिक नागरिकता कानून के खिलाफ बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतरी जिसके बाद देखते-देखते पूरा सूबा आंदोलन में शामिल हो गया.

आन्दोलन की बढ़ती व्यापकता से डर कर योगी सरकार ने गैंगेस्टर, गुंडा एक्ट, जिलाबदर, रासुका जैसे हथियार इस्तेमाल किए. मऊ के थाना दक्षिण टोला में 17 दिसंबर 2019 को एफआईआर नंबर 246 में 24 धाराओं में 61 लोगों,

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एफआईआर नंबर 247 में 20 धाराओं में 72 लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर हुई. एफआईआर नंबर 249 और 250 के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया.

थाना कोतवाली में 17 दिसंबर को एफआईआर नंबर 590 के तहत 11 धाराओं में 90 लोगों के खिलाफ नामजद और 1 अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया.

थाना दक्षिण टोला में एफआईआर नंबर 106 में उ0प्र0 गिरोहबंद समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, (गैंगेस्टर एक्ट) 1986 के तहत 22 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया. मऊ में छह व्यक्तियों के विरुद्ध रासुका की कार्रवाई की गई.

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मंच ने कहा कि रासुका के आर्डर के पांच दिन के भीतर सरकार आरोपी को सूचित करती है कि उसे एनएसए में निरुद्ध किया गया है. यह भी बताया जाता है कि किन आधार पर निरुद्ध किया गया है
और कब तक के लिए निरुद्ध किया गया है. आरोपी को वह तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं जिससे वो अपना रिप्रेजेंटेशन उस निरुद्धी के खिलाफ दे सके,
यह कानून है पर यहां तो डीएम ने आरोपियों के घर वालों को बस इतनी सूचना भेज दी कि आपके बेटे को एनएसए में निरुद्ध किया गया है. लेकिन यह सूचना नहीं कि किस तारीख को निरुद्ध किया है और कितने दिन के लिए.
निरुद्ध किए जाने का आधार भी नहीं बताया गया, आम तौर पर हजार-पांच सौ पेज का दस्तावेज होता है जिसके आधार पर आरोपी जवाब दाखिल करता है.
16 दिसंबर को मिर्जाहादिपुरा चैराहे के पास से एक ही परिवार के मसूद, आरिफ, शाहिद और नौशाद को पुलिस ने उठा लिया। जुर्म बस इतना कि इनका घर सड़क किनारे था.
पुलिस ने आरोप लगाया कि इनके घर से पत्थरबाजी हुई। लोग कहते हैं कि फैजी गेट के पास एक नाबालिग बच्चे की गिरफ्तारी कर 55 दिन जेल में रखा.
वास्तविकता यह है कि पुलिस ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे पीड़ितों को न्याय होने का अहसाह हो, इसके विपरीत बेगुनाहों को केवल मानसिक पड़ताड़ना और जिल्लत ही उठानी पड़ती रही है.
प्रतिनिधिमंडल में रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, मोहम्मद इमरान, आदिल, एडवोकेट विनोद यादव, अवधेश यादव, मोहम्मद कासिम, आबिद और मुन्ना शामिल थे.

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