भारत में मानवाधिकार का दायरा हुआ सीमित, चुनिंदा लोगों के लिए ही है यह अधिकार: एमनेस्टी इंटरनेशनल

(सईद आलम खान ब्यूरो चीफ, गोरखपुर)

भारत में मानव अधिकारों को लेकर वैश्विक स्तर पर रिपोर्ट तैयार करने वाली एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बहुत ही चौंकाने वाला खुलासा किया है.

इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चुनिंदा लोगों के लिए ही है तथा सरकार की नीतियों के विरोध में उनकी आवाजों को दबाने के लिए असंवैधानिक एवं गैर कानूनी तरीके अपनाए जाते हैं,

भले ही विरोध का माध्यम शांतिपूर्ण प्रदर्शन के जरिए ही क्यों ना दर्ज किया जा रहा हो. कोविड-19 के कारण वर्ष 2020 लॉकडाउन में ही गुजर गया.

ऐसी विकट परिस्थिति में किस तरीके से सरकारी संस्थाओं ने मानव अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य किया, इसकी समीक्षा किया जाना अनिवार्य हो जाता है.

हालांकि रिपोर्ट की माने तो यह पता चल रहा है कि छात्र, शिक्षा से जुड़े लोग, पत्रकार, कलाकार तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता जिन्होंने सरकार का विरोध करने का दुस्साहस किया,

उन्हें बिना सबूत और यथोचित तहकीकात के ही लंबे समय के लिए जेलों में ठूंस दिया गया. दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा लगातार कोरोनावायरस संक्रमण को देखते हुए जिलों में कैदियों की संख्या कम करने निर्देश देने के बावजूद सरकार ने बड़ी संख्या में लोगों को जेल की हवा खिला दिया.

अन्तर्राष्ट्रीय समसामियिकी 2 (28-Aug-2020)एमनेस्टी इंटरनेशनल और दिल्ली के दंगे (Amnesty International and Delhi riots)

इसके अतिरिक्त जाति से संबंधित हिंसक वारदातें, महिलाओं पर हिंसा के मामले बढ़ते ही जा रहा है. इन विषयों पर न तो प्रशासन और ना ही पुलिस इनकी शिकायत दर्ज करती हैं तथा दोषियों को सजा दिलाने में फिसड्डी ही साबित हुई हैं.

कुछ तो ऐसे भी मामले संज्ञान में आए जिनमें पुलिस और प्रशासन अपराधियों को ही बचाती हुई नजर आई जबकि पीड़ितों और गवाहों को गुनाहगार साबित करते रहे.

महामारी के नाम पर शक्ति से लोगों के आवागमन की स्वतंत्रता को कुचला गया. इसमें हजारों प्रवासी, श्रमिक भूख और असुरक्षा का सामना करते रहे.

यहां तक कि कोरोनावायरस के नाम पर नागरिकों के निजी अधिकारों को भी कुचल दिया गया. इस रिपोर्ट में इस तथ्य का भी खुलासा हुआ है कि तालाबंदी के बाद से देश में अभिव्यक्ति और आवागमन के मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित कर दिया गया है.

सामान्य जनता से इसे तोड़ने का आरोप लगाकर उन पर खूब जुर्माना वसूला गया, यातनाएं दी गई जबकि राजनेता लॉक डाउन की खुलेआम अवहेलना करते रहे.

इस महामारी में एक नया ट्रेंड यह भी देखने को मिला कि इसके पूर्व में आयोजित किए गए आंदोलनों पर भी पाबंदियां लगती थीं किंतु अब पुलिस ही आंदोलनकारियों को हिंसा के लिए उकसाती है

तथा हिंसा हो जाने के पश्चात संपत्ति के नुकसान की भरपाई भी वसूल करती है. जिस तरीके से जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त करके उसे दो हिस्सों में बांटा गया और सभी

स्थानीय राजनेताओं को लंबे समय तक नजरबंद कर दिया गया, मीडिया पर भी पाबंदी लगा दी गई, लोकतंत्र के लिए वह शर्मनाक कही जाएंगी.

जम्मू-कश्मीर में लगभग सभी समाचार पत्रों को बंद कर दिया गया और उनके दफ्तरों पर छापे मारे गए. जिन पत्रकारों को पकड़ा गया उन्हें जेल में गंभीर यातनाएं तक दी गईं.

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