लाशों के ढेर पर बन रहा ‘सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट’ क्या नागरिकों की जान से अधिक जरूरी है? सईद आलम खान

(Bureau Chief, Gorakhpur-Dr. Saeed Alam Khan)

आज देश में स्वास्थ्य से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर इस कदर कमजोर है कि लोग इस कोरोना महामारी के इलाज में ना तो टीकाकरण करवा पा रहे हैं,

उनके पास अस्पतालों में बेड और वेंटिलेटर मौजूद हैं और ना ही पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति है. किन्तु हमारे प्रधानमंत्री को इन सब चुनौतियों से कोई मतलब नहीं है.

‘आपदा में अवसर’ ढूंढने वाले नरेंद्र मोदी के लिए यह शायद अवसर ही माना जा सकता है कि उन्होंने अपने लिए साढ़े आठ हजार करोड़ का विमान खरीदा है.

वहीं जब देश का दम घुट रहा है तो प्रधानमंत्री आवास बनवाया जा रहा है जिसका नाम है सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट. ऐसा बताया जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में लगभग 20 लाख करोड रुपए खर्च होंगे तथा इसे दिसंबर 2022 तक बनवा लिया जाएगा.

आज दिल्ली में लॉकडाउन है, जनजीवन ठप है किंतु सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट के निर्माण को जरूरी सेवाओं में शामिल कर लिया गया है किंतु यह नहीं बताया जा रहा है कि लाशों के ढेर पर बनने वाला यह हवा महल न बनता तो किसकी जान चली जाती?

आए दिन ऑक्सीजन आपूर्ति, दवाइयों, बेड और वेंटीलेटर्स के अभाव में लोग मर रहे हैं, श्मशान घाट और कब्रिस्तान लाशों के ढेर से पट चुके हैं किंतु कोई इसका जायजा लेने वाला, सरकार से प्रश्न पूछने वाला,

चौथा स्तंभ यानि प्रेस देख रहा है और ना ही कोई सामाजिक सक्रिय व्यक्ति. जो भारत अपनी गरीबी के दिनों में भी नागरिकों को मुफ्त में टीकाकरण करता आया है आज उसी भारत में टीकाकरण के लिए पैसे वसूले जा रहे हैं.

एक तिहाई गरीबी से भरा देश अपने नागरिकों का टीकाकरण कैसे करेगा? इस पर सोचने वाला कोई नहीं है और ना ही उस पर कोई बहस करने को आगे आ रहा है.

देशवासियों से बताया गया है कि प्रधानमंत्री बहुत मजबूत हैं, जी खाते हैं, मशरूम खाते हैं, 18 घंटे सोते हैं 10 लाख का सूट पहनते हैं इसलिए उनसे प्रश्न करना देशद्रोह है.

अब यह कौन पूछे कि लोगों की जान बचाना जरूरी है कि सेंट्रल विस्टा जैसा हवामहल बनवाना. आज हमारा लोकतंत्र रोज क्रूरता के नए कीर्तिमान लिख रहा है, सरकार अपने रोजनामचे में प्रत्येक दिन बर्बरता का नया अध्याय जोड़ रही है.

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