BY–THE FIRE TEAM
देश में 1994 के इसरो जासूसी मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इसरो वैज्ञानिक को बेवजह गिरफ्तार किया गया था जो प्रताड़ित करने वाला और मानसिक यातना के समान था । शीर्ष अदालत ने मामले में केरल के पुलिस अधिकारियों की भूमिका की जांच कराने का भी निर्देश दिया । इससे संबंधित मामले का प्रमुख घटनाक्रम इस प्रकार रहा –
अक्तूबर 1994 : मालदीव की नागरिक मरियम रसीदा तिरूवनतंपुरम में गिरफ्तार। मरियम ने इसरो के राकेट इंजन की गुप्त ड्राइंग पाकिस्तान को बेचने के लिए अवैध तरीके से प्राप्त किया था।
नवंबर : इसरो के क्रायोजेनिक इंजन परियोजना के निदेशक नाम्बी नारायण गिरफ्तार। इस दौरान इसरो के उप निदेशक डी शशिकुमारन रूसी अंतरिक्ष एजेंसी में भारतीय प्रतिनिधि, के चंद्रशेखर भी गिरफ्तार । मामले में श्रमिक ठेकेदार एस के शर्मा तथा रसीदा की मालदीव की मित्र फोउसिया हसन भी पकड़ी गयी ।
जनवरी 1995 : गिरफ्तार इसरो वैज्ञानिक और उद्यमी जमानत पर रिहा । मालदीव की नागरिक हिरासत में बरकरार ।
अप्रैल 1996 : केंद्रीय जांच ब्यूरो ने केरल की अदालत में रिपोर्ट पेश कर कहा कि जासूसी मामला झूठा है और आरोपों के समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं है ।
मई : अदालत ने सीबीआई की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए सभी आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया ।
जून : केरल सरकार ने इस मामले की जांच प्रदेश पुलिस से दोबारा कराने का निर्णय किया, जिसे चंद्रशेखर ने चुनौती दी थी ।
नवंबर : केरल उच्च न्यायालय ने चुनौती को खारिज करते हुए सरकार की अधिसूचना को बरकरार रखा जिसे उच्चतम न्यायालय ने बाद में खारिज कर दिया ।
मई 1998 : उच्चतम न्यायालय ने आरोप मुक्त किये गए नारायणन और अन्य को मुआवजे के तौर पर एक एक लाख रूपये देने का निर्देश दिया । इसके साथ ही राज्य सरकार को भुगतान करने का आदेश दिया ।
अप्रैल 1999 : नारायणन ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाया और कहा कि जिस प्रकार की मानसिक पीड़ा और मानसिक यातना का उन्हें सामना करना पड़ा है उसके लिए राज्य सरकार से उन्हें और मुआजवा दिया जाना चाहिए ।
मार्च 2001 : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दस लाख रूपये के अंतरिम मुआवजे की अनुसंशा की । राज्य सरकार से मुआवजा देने को कहा जिसे प्रदेश सरकार ने चुनौती दी ।
सितंबर 2012 : उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को नारायणन को दस लाख रूपये बतौर मुआवजा देने का निर्देश दिया ।
मार्च 2015 : सीबीआई की रिपोर्ट के आधार पर मामले के दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने का मामला उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार पर छोड़ा ।
अप्रैल 2017 : उच्चतम न्यायालय ने नारायणन की याचिका पर सुनवाई शुरू की जिसमें उन्होंने मामले की जांच करने वाले केरल के पूर्व पुलिस महानिदेशक सिबी मैथ्यू और अन्य के खिलाफ कार्रवाई किये जाने की मांग की थी ।
तीन मई 2018 : प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़़ की पीठ ने कहा कि यह नारायणन को 75 लाख रू मुआवजा दिये जाने और उनकी प्रतिष्ठा को पुन: बहाल करने पर विचार कर रहा है ।
आठ मई : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस मामले की जांच करने वाले विशेष जांच दल (एसआईटी) में शामिल अधिकारियों की भूमिका की जांच दोबारा करने के लिए केरल सरकार को कहने पर विचार कर रहा है ।
नौ मई : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि “दुर्भाग्यपूर्ण अभियोजन” के कारण नारायणन की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है । केरल सरकार उन्हें मुआवजा देने के दायित्व से नहीं बच सकती ।
10 जुलाई : उच्चतम न्यायालय ने याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा । सीबीआई ने अदालत से कहा कि वह नारायणन के आरोपों की जांच शीर्ष न्यायालय की देख रेख में करने के लिए तैयार है ।
14 सितंबर : इसरो जासूसी मामले में मानसिक यातना के लिए उच्चतम न्यायालय ने नारायणन को 50 लाख रू मुआवजा देने का निर्देश दिया ।
(पीटीआई -भाषा )