भाजपा के विरुद्ध धर्म-निरपेक्षता की राज-नीति से नहीं लड़ा जा सकता: कँवल भारती (भाग-1)

जिस तरह उत्तरप्रदेश में भाजपा ने मायावती को मुख्यमंत्री बनाकर अपना जनाधार बढ़ाया, उसी तरह उसने बिहार में नितीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाकर अपनी ताकत बढ़ाई.

मायावती और नितीश दोनों सामाजिक परिवर्तन और धर्मनिरपेक्ष राजनीति के चेहरे थे, पर भाजपा ने दोनों को ही हिंदुत्व का चेहरा बना दिया. सिर्फ चेहरा ही नहीं बनाया बल्कि जैसा चाहा, वैसा नचाया भी.

मायावती को सत्ता में लाने वाली भी भाजपा है और सत्ता से हटाने वाली भी वही है. अब स्थिति यह है कि भाजपा को मायावती की जरूरत नहीं है पर मायावती को हमेशा भाजपा की जरूरत बनी रहेगी—सिर्फ अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए.

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ठीक यही परिणति आगे चलकर नितीश की भी होनी है भाजपा ने नितीश के सहारे बिहार में हिन्दू एजेंडे को धीरे-धीरे धार दी आरएसएस के संगठनों को कुछ भी करने की खुली छूट मिली, जिस तरह मायावती ने उत्तरप्रदेश में दी थी.

आज उसी के बल पर बिहार में भाजपा नितीश की पार्टी से बड़ी पार्टी हो गई है. अब नितीश की ताकत भी कम होगी, और भाजपा अपने एजेंडे को भी पूरी तरह लागू करेगी, जिसका परिणाम यह होगा कि 2025 के चुनावों में भाजपा बिहार में अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बना सकती है.

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रहा सवाल महागठबंधन का तो भाजपा उसे अस्तित्व में रहने ही नहीं देगी, जब सपा और बसपा का गठबन्धन वह खत्म करा सकती है, तो उसके लिए महागठबंधन कौन बड़ी चीज है?

वैसे भी महागठबंधन स्वार्थ पर बना है और स्वार्थ पर ही टूट भी जायेगा क्योंकि तात्कालिक राजनीति की आयु लंबी नहीं होती. बिहार के नतीजों के साथ ही उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के उपचुनावों का भी नतीजा भाजपा के पक्ष में आया है.

इससे पता चलता है कि दलित और पिछड़ा वर्ग काफी हद तक भाजपा के साथ है. अगर दलित और पिछड़ा वर्ग भाजपा के साथ न होता तो न केवल उपचुनावों में, बल्कि बिहार में भी भाजपा का जीतना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी था.

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इसका स्पष्ट कारण यही है कि हिन्दू उच्च जातियों की संख्या इतनी अधिक नहीं है कि उसके बल पर भाजपा जीत सके. अब सवाल यह है कि दलित और पिछड़ा वर्ग भाजपा को क्यों वोट देता है? उत्तर है, हिन्दूवादी होने की वजह से.

इससे एक बात साफ़ है कि धर्मनिरपेक्षता की राजनीति से भाजपा को नहीं हराया जा सकता. भाजपा से लड़ने के लिए आक्रामक हिन्दूवाद का विरोध करना भी ठीक नहीं है क्योंकि ऐसा करने से भाजपा उसे हिन्दू-विरोध का मुद्दा बना लेगी. और यह एक ऐसा खेल है, जिसे आरएसएस और भाजपा सबसे अच्छा खेलते हैं.

अब सवाल यह है कि भाजपा को किस तरह कमजोर किया जाए? इसे थोड़ा इतिहास से समझना होगा. आज जिस जगह भाजपा खड़ी है, कल उसी जगह इतनी ही मजबूती से कांग्रेस खड़ी थी.

कांग्रेस के विरुद्ध बाबासाहेब डा. आंबेडकर ने जीवन-भर संघर्ष किया पर कांग्रेस कमजोर नहीं हुई. लोहिया भी अपने घोर कांग्रेस-विरोध से कांग्रेस को सत्ता से बेदखल नहीं कर पाए.

इसका कारण क्या है? कारण वही है, जो आज भाजपा के विरोध में है. बाबासाहेब आंबेडकर ने कांग्रेस को उसकी ब्राह्मणवादी नीतियों के कारण कटघरे में खड़ा किया था.

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उन्होंने यहाँ तक कहा था कि अगर कांग्रेस के हाथों में सत्ता आई तो वह भारत में हिन्दूराज कायम करेगी, जो दलितों, पिछड़ों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिए हानिकारक होगा.

लेकिन भारत की जनता पर इसका कोई असर नहीं हुआ असर इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि भारत की जनता ब्राह्मणवाद के जबरदस्त प्रभाव में थी.

वह आज भी उसके प्रभाव में है, और यह कहना गलत न होगा कि ब्राह्मणवाद का विस्तार पहले से अब और भी ज्यादा हुआ है. यह सिर्फ भारत में संभव है कि सामाजिक न्याय के झंडावरदार कमजोर होकर बैठ जाएँ,

और उसके विरोध में कमंडल की राजनीति सत्तारूढ़ हो जाए. आखिर कुछ तो कारण होगा इसका?

to be continued……(part 1)

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