गोरखपुर: आल इण्डिया महापद्मनंद कम्युनिटी एजुकेटेड एसोसिएशन जिला इकाई गोरखपुर के तत्वावधान में जिले के संरक्षक नकछेद नंद के निर्देशन एवं
जिला अध्यक्ष आरडी नंद के नेतृत्व में आज 18 दिसंबर 2021, शनिवार को फ़र्टिलाइज़र स्थित भगवानपुर में परम देई देवी जूनियर हाई स्कूल पर
भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले पद्मश्री भिखारी ठाकुर की 134वी जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई गई. एसोसिएशन के पदाधिकारियों,
कार्यकर्ताओं और समाज के लोगों ने उनके चित्र पर माल्यार्पण, पुष्पांजलि अर्पित कर उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर चर्चा किया.
साथ ही साथ यह संकल्प लिया कि जिस तरह से पद्मश्री भिखारी ठाकुर ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को अपने अभिनय से दूर किया उसी तरह से समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर किया जाएगा.
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला संरक्षक नकछेद नंद ने कहा कि- “पढ़ाई-लिखाई, अमीरी-गरीबी, जाति-धर्म की मोहताज नही होती है. तमाम महापुरुषों ने अपने कृतित्व व व्यक्तित्व से सिद्ध किया है.”
आज के ही दिन कबीर के बाद भारत भूमि पर एक महापुरुष का अवतरण हुआ जिन्हें भारत के प्रकांड विद्वान राहुल संस्कृतकयन ने “भोजपुरी का शेक्सपियर” कहा था.
हम उन्हें भिखारी ठाकुर के नाम से जानते हैं. भिखारी ठाकुर लोक कलाकार ही नहीं थे, बल्कि जीवन भर सामाजिक कुरीतियों और बुराइयों के खिलाफ कई स्तरों पर जूझते रहे.
भिखारी ठाकुर के अभिनय एवं निर्देशन में बनी भोजपुरी फिल्म ‘बिदेसिया’ आज भी लाखों-करोड़ों दर्शकों के बीच पहले जितनी ही लोकप्रिय है.
उनके निर्देशन में भोजपुरी के नाटक ‘बेटी बेचवा’, ‘गबर घिचोर’, ‘बेटी वियोग’ का आज भी भोजपुरी अंचल में मंचन होता रहता है.
इन नाटकों और फिल्मों के माध्यम से भिखारी ठाकुर ने सामाजिक सुधार की दिशा में अदभुत पहलकदमी की है.
बतौर मुख्य अतिथि मंडल अध्यक्ष विनय कुमार शर्मा नंद कहा कि भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व में कई आश्चर्यजनक विशेषताएं थी.
शुरुआती जीवन में वह रोजी-रोटी के लिए अपना घर-गांव छोडकर खड़गपुर चले गए. कुछ वक्त तक वहां नौकरी की.
तीस वर्षों तक पारंपरिक पेशे से जुड़े रहने के बाद जब वह अपने गाँव लौटे तो लोक कलाकारों की एक नृत्य मंडली बनाई.
उनकी संगीत में भी गहरी अभिरुचि थी, सुरीला कंठ था सो, वह कई स्तरों पर कला-साधना करने के साथ-साथ भोजपुरी साहित्य की रचना में भी लगे रहे.
भिखारी ठाकुर ने कुल 29 पुस्तकें लिखीं, आगे चलकर वह भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के समर्थ प्रचारक और संवाहक बने.
आजादी के आंदोलन में भिखारी ठाकुर ने अपने कलात्मक सरोकारों के साथ शिरकत की. अंग्रेजी राज के खिलाफ नाटक मंडली के माध्यम से जनजागरण करते रहे.
इसके साथ ही नशाखोरी, दहेज प्रथा, बेटी हत्या, बालविवाह आदि के खिलाफ अलख जगाते रहे. यद्यपि बाद में अंग्रेजों ने उन्हें रायबहादुर की उपाधि दी.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रदेश मीडिया प्रभारी सुदामा नंद ने कहा कि- भिखारी ठाकुर की रचनाओं का ऊपरी स्वरूप जितना सरल दिखाई देता है,
भीतर से वह उतना ही जटिल है और हाहाकार से भरा हुआ है. इसमें प्रवेश पाना तो आसान है, पर एक बार प्रवेश पाने के बाद निकलना मुश्किल है.
वे अपने पाठक और दर्शक पर जो प्रभाव डालते हैं, वह इतना गहरा होता है कि इससे पाठक और दर्शक का अंतरजगत उलट-पलट जाता है.
उनकी रचनाओं के भीतर मनुष्य की चीख भरी हुई है. उनमें ऐसा दर्द है, जो आजीवन आपको बेचैन करता रहे.
इसके साथ-साथ सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गहन संकट के काल में वे आपको विश्वास देते हैं, अपने दुखों से, प्रपंचों से लड़ने की शक्ति देते हैं.
कार्यक्रम में उमेश नंद, रामाश्रय उर्फ भगत जी, आरके ऑडिटर, जयप्रकाश, श्रीभागवत, रामकरन, बैजनाथ, राजेश, परमात्मा, अशोक नंद आदि शामिल रहे.