ये खुशनसीब थे, जो बचा लिए गए- शुकुल जी के साथ यह नहीं हुआ क्योंकि वे खुद तय करके कुनबे में दाखिल हो गए, तो अब कोई करता भी, तो क्या करता?
बहरहाल, लोग शुकुल जी के लिए नहीं बल्कि इसलिए परेशान हैं कि इसने अपने बोल बिगाड़े सो बिगाड़े, बजरंगबली हनुमान के भी बिगाड़ दिए.
हनुमान सचमुच की मुश्किल में हैं. इनका पूरा गिरोह न जाने हनुमान जी के पीछे हाथ-पाँव धोकर क्यों पड़ा है?
पहले उनके नाम पर एक गुंडा गिरोह बनाया, उसके बाद उनकी निर्मल छवि को भयानक डरावनी पहचान देकर हिंदुत्व की आई डी बनाई.
इतने पर भी संतोष नहीं हुआ तो अभी कुनबे के ब्रह्मा जी ने इन्हें कर्नाटक की सारी सीटों से चुनाव ही लड़वा मारा. बजरंग दल को ही बजरंग बली साबित करते हुए
मोदी स्वयं जय बजरंग बली के नारे से अपनी सभा शुरू करते थे और मतदाताओं से बटन दबाने से पहले बजरंग बली का नाम सुमिरन करने को भी कहते थे.
यह बात अलग है कि कन्नड़ भाषी रामायण हम्पी के पास की जिस जगह, अन्जनाद्री को हनुमान की जन्मस्थली बताती है,
उस सहित जिले और करीब की छह में से पांच सीटों पर भाजपा की करारी हार हुयी, एक भी बमुश्किल हजार वोट के अंतर से जीती.
इसके पहले यह पूरा कुनबा हनुमान की अपनी-अपनी जन्मपत्री लिए अपने-अपने हिसाब से उनकी जाति बताने में लगा रहा.
राजस्थान के भाजपा विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने हनुमानजी को घोटा वाला सांड बताया, भाजपा नेता केंद्रीय मंत्री सत्यपाल चौधरी ने कहा कि हनुमानजी आर्य थे.
इधर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रहस्योद्घाटन किया कि हनुमान जी दलित थे तो उधर मप्र-छग दोनों में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष रहे नंदकुमार साय ने हनुमानजी को आदिवासी बताया.
भाजपा नेता व मंत्री चौधरी लक्ष्मीनारायण ने पक्की जानकारी दी कि हनुमानजी जाट थे, भाजपा सांसद हरिओम पांडे कुनबे के हिसाब से
ज्यादा पॉलिटिकली करेक्ट खोज करके लाए और हनुमान जी को ब्राह्मण बताने के साथ-साथ जटायु को मुसलमान बता मारा.
इसी बीच भाजपा एमएलसी बुक्कल नवाब की प्रज्ञा एक बार पुनः जाग्रत हुई और उन्होंने फरमाया कि हनुमानजी मुसलमान थे.
लाला रामदेव ने योग साधना शोध के बाद विश्व को बताया कि हनुमान जी क्षत्रिय थे. भाजपा के राज्यसभा सांसद गोपाल नारायण ने योगी आदित्यनाथ की बात काटते हुए हनुमानजी को दलित से भी नीचे बंदर बताया.
अब जब हनुमान की लूट है, लूट सके तो लूट, चल ही रही थी तब जैन मतावलंबी भी कैसे पीछे रहते! आचार्य निर्भय सागर ने बताया कि
हनुमान जी और कुछ नहीं, बल्कि जैन थे हालांकि विवाद इसके बाद भी शेष रहा कि वे दिगंबर थे या श्वेताम्बर या अर्ध दिगंबर अर्ध लालाम्बर?
यह वर्ष 2018 तक की भाजपा-खोजित हनुमान जाति चरितावली है. गुजरे 5 वर्षों में इन भाजपाई दावों में वे गुर्जर, यादव और कायस्थ भी हो गए और बालि कुर्मी बना दिए गए.
बहरहाल जो भी बनाया-टपोरी बनाने की हिम्मत-हिमाकत किसी ने नहीं की, इसके लिए शुकुल जी को ही अवतरित होना पड़ा.
मनोज मुन्ताशिर शुक्ला का कहना है कि उन्होंने हनुमान से जो भी कहलवाया है वह, आजकल के समाज की आम बोलचाल की भाषा है.
उन्होंने तर्क-तूणीर से अमोघ ब्रह्मास्त्र छोड़ते हुए कहा कि “पिछली रामायण 80 के दशक की भाषा में थी, 2023 में भाषा बदल चुकी है.
अब सवाल यह है कि वे समाज और 2023 की आम बोलचाल की भाषा किसे मानते हैं? वे दरअसल अपने समाज-कुनबे-की बात कर रहे हैं.
उस कुनबे की बात कर रहे हैं, जिसके सर्वोच्च नेता नरेन्द्र मोदी एक असामयिक और दु:खद मृत्यु की शिकार स्त्री के लिए “50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड”
और एक गंभीर राजनीतिक हमले वाले हादसे में शहीद हुए पूर्व प्रधानमंत्री की जीवन संगिनी और एक बड़ी राजनीतिक पार्टी की प्रमुख एक महिला के लिए “कांग्रेस की विधवा” जैसे घृणित जुमले इस्तेमाल करते हैं.
एक जमाने में इन्हीं की पार्टी के शीर्षस्थ जुगाडू प्रमोद महाजन उन्हें ‘मोनिका लेविंस्की’ कह देते हैं. इन्ही के एक और नेता गिरिराज सिंह उनकी काली गोरी चमड़ी तक आ जाते हैं.
इसी तबके के एक और नेता दयाशंकर सिंह हैं, जिन्हें पार्टी ने बाद में हटा दिया, एक अन्य महत्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्ति मायावती को वेश्या तक कह देते हैं.
ये सिर्फ कुछ मिसालें है-इस तरह की टिप्पणियों की तादाद इतनी ज्यादा है कि एक पूरा ग्रन्थ तैयार किया जा सकता है.
इनके आगे शुकुल जी तो अभी ककहरा ही सीख रहे हैं. ये भाषाई बेशऊरी और शाब्दिक व्यभिचार (यह सबसे कमतर शब्द हैं) सिर्फ भाजपा तक सीमित नहीं है, यह इनके संस्कार में है.
इनके सर्वोच्च आराध्य विनायक दामोदर सावरकर बलात्कार को एक राजनीतिक औजार बता चुके हैं, इनके पिछले वाले सरसंघचालक कुप्प सुदर्शन
अपने ही कुनबे की नेत्री उमा भारती द्वारा असहमति जताने पर उन्हें “एक तो महिला, ऊपर से नीची जाति की” का तमगा थमा चुके हैं.
अभी इतने से काम चलायें; बाकी सरसंघचालकों की कही-लिखी गिनाएंगे, तो सुबह हो जायेगी. ठीक यही वजह है कि दीपिका के परिधान और शाहरुख के
‘पठान’ पर आहत हुयी भावनाओं से बिलबिलाने वाले स्वयंभू सुप्रीम सेंसर नरोत्तम मिश्रा सहित और उन सहित इस फिल्म को आशीर्वाद देने वाले आधा दर्जन से ज्यादा
मुख्यमंत्रियों और एक उपमुख्यमंत्री की भावनाएं हनुमान के हिस्से टपोरी संवाद थमाने से रत्ती भर भी आहत नहीं हुईं, उन्हें इनमें कुछ भी अनुचित नहीं लगा.
बात-बात पर टाकीजों पर पोस्टर फाड़ने वाले संघी गिरोहों को भी गुस्सा नहीं आया. इनका मुखपत्र, जिसे कई बार ये अपना मुख और पत्र दोनों ही मानने से इनकार कर देते हैं,
वह ‘ऑर्गेनाइजर’ और ‘पांचजन्य’ भी कुछ नहीं बोला. स्वाभाविक भी है, क्योंकि यह असल में उनकी आम बोलचाल की भाषा है.
देश भर में शोर मचने के बाद अब इन संवादों को हटाने की घोषणा से जरूर मुमकिन है कि उनकी भावनाएं आहत हो जायें.
इसीलिये कृपया ध्यान दें कि खोट सिर्फ मनोज मुन्ताशिर शुक्ला में देखना नाकाफी होगा; वे सिर्फ एक छोटी सी नाली हैं-ट्रिब्यूटरी हैं- गटर कहीं और है.
जब तक इस गटर को नहीं सुखाया जाएगा, तब तक दुर्गन्ध की सीपेज कभी बाढ़, तो कभी अंतर्धारा के रूप में प्रवाहित होती रहेगी और सिर्फ हजारों वर्ष में
हासिल सभ्यता को ही नहीं, बमुश्किल सदियों में संस्कारित भाषा और वर्तनी का शील और विवेक का संस्कार भी हरती रहेगी.
यह भी कि-जैसा कि सारे धर्मान्धों और धर्म-धंधेबाजों के बारे में साबित, प्रमाणित सच है – वे अंततः उसी धर्म को कहीं ज्यादा नुक्सान पहुंचाते है, जिसके नाम पर दूकान चला रहे होते हैं.
इधर वाले मनोज शुक्ला मार्का लोग पंचतंत्र की कहानी के स्वामिभक्त बन्दर की तरह सोते समय राजा की मक्खी उड़ाने के लिए तलवार का इस्तेमाल कर
उनकी छवि को ही घायल कर रहे हैं, जिनकी भक्ति का ढोल पीटकर पैसा बटोर रहे हैं. ऐसे में तो आदिपुरुष काण्ड ही हो सकता था, सो हुआ है.
(लेखक पाक्षिक ‘लोकजतन’ के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं-संपर्क : 94250-06716)