रामायण का पुनः प्रसारण… मूलनिवासियों की नजर में क्या है मायने?

रामायण, महाभारत सब काल्पनिक कहानियां हैं इतिहास नहीं, यह बात सुप्रिम कोर्ट ने भी श्री ललई सिंह यादव जी के केस करने से, केस नम्बर 412/1970, दिनांक: 19/01/1971 हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट केस नम्बर 299/1971, दिनांक: 16/09/1976 में माना है.

मित्रो कभी सतयुग, द्वापर युग, त्रेता युग या कलयुग नही था न है. ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, राम, कृष्ण, हनुमान, रावण आदि पैदा हुए ये सब व्यवस्थावादियों की लिखी काल्पनिक कहानियों के काल्पनिक पात्र हैं. इन्हें पैदा इसलिए किया गया था ताकि भारत के मूलनिवासियों पर धोखे से वार और हत्या करके कल्पित कहानियां गढ़ी जा सके

या गढ़ दी गई है. वैसे ही जैसे स्पाइडर मैन और शक्तिमान जैसी कहानियां दिखाई जाती है और समय समय पर अंधविश्वास को मनुवादी लोग चेक करते रहते है कि भारत के लोगों के अन्दर धर्म के प्रति डर बना रहे. जैसे- गणेश की पत्थर की मूर्ति को दूध पिलाना,

गुजरात मे संतोषी मां को पैदा करना (व्यापारी द्वारा पीली साड़ी के स्टॉक को बेचने के लिए), घरों के दरवाजे पर गोबर का लेप लगवाना नही तो घर का बड़ा बेटा मर जायेगा, मायके से साड़ी ला कर चढ़ाइए नही तो परिवार में अशुभ हो जाएगा, घर के आगे गेरू लगाइए नही तो परिवार का अशुभ हो जाएगा,

कोई देवी आएगी प्याज, रोटी मांगेगी अगर खाएगी तो ठीक है नही तो किसी भी सदस्य को पैरों तले कुचल देगी आदि. दूर-संचार मंत्री को चाहिए कि-

  • मानव सभ्यता के विकास का इतिहास दिखाना व पढ़ाने चाहिए,
  • मानव कब तक जंगलों में शिकार करके कच्चा मांस खाकर जीवित रहा,
  • मानव कब आग का आविष्कार करके मांस भूनकर खाने लगा,
  • मानव कब से खेती करने लगा,
  • मानव कब पत्तों से तन ढकना शुरू किया,
  • मानव कब कपड़े का आविष्कार किया,
  • मानव कब लोहा, तांबा, पीतल, सोना, चांदी आदि धातुओं का आविष्कार किया,
  • मानव कब लिखना पढ़ना शुरू किया, मानव कब कागज का आविष्कार किया, यह सब कुछ पूरे विश्व के इतिहास में दर्ज होगा आम जनता को यह दिखाना और पढ़ाना चाहिए और यह सब कुछ हजार साल पहले का इतिहास है जो पुरातात्विक सबूतों का अध्ययन करके लिखा गया है, यही सत्य है.

मित्रों व्यवस्थावादियों द्वारा लिखे निराधार कपोल कल्पित सतयुग, त्रेता, द्वापर की कथित लाखों साल पहले की कहानियां जिन्हें व्यवस्थावादी इतिहास बताते हैं, जबकि तर्क करने पर कही भी नही ठहरती. साथियों तर्कशील बनिए और बच्चों को भी तर्कशील बनाइए.

जबसे लोहे का आविष्कार हुआ यानी अड़तीस सौ साल के ज्ञात इतिहास में कोई राम या कृष्ण का अवतार हुआ नहीं और उसके पहले हो नहीं सकता क्योंकि हर ग्रंथ में तलवार, त्रिशूल, फरसे आदि लोहे के बने हथियारों का वर्णन है. सवाल यह है कि लाखों साल पहले तलवार, त्रिशूल, फरसा आदि हथियार बनाने के लिए लोहा कहाँ से आया?

इससे यही सिद्ध होता है कि ये कहानियां हैं जो लोहा और कागज के आविष्कार के बाद लिखी हैं गई हैं. आस्था, श्रद्धा तर्कशीलता का मार्ग अवरूद्ध कर देती है और मनुष्य को भक्त बना देती है जिससे धर्म का धंधा करने वाले मुफ्तखोरों को उनका हर प्रकार का शोषण करने का अवसर मिल जाता है

और शोषकों का विकास एवं शोषितों का सत्यानाश हो जाता है जिन काल्पनिक कहानियों को आप धर्म समझ रहे हैं वे कुछ नहीं केवल व्यवस्थावादियों के वर्चस्व रखना व सामाजिक व्यवस्था का महिमा मंडन है जिसमें शूद्रों (ओबीसी/एससी/एसटी) को शिक्षा, संपत्ति, शस्त्र, सम्मान का कोई अधिकार ही नहीं है.

व्यवस्थावादियों के धर्म के ठेकेदारी के द्वारा सभी समुदाय की महिलाओं को सती प्रथा के नाम से महिमा मंडित करके तो मृत पति की चिता पर रखकर जिन्दा जला दिया जाता था. इस क्रूर प्रथा को अंग्रेजों ने कानून बनाकर प्रतिबंधित किया.  ईश्वर, देवी, देवता न शूद्रों को शिक्षा संपत्ति शस्त्र सम्मान दिलाने के लिए आया और न ही किसी को उन लाखों महिलाओं की चीख-पुकार ही सुनाई पड़ी जो पति के शव के साथ जिन्दा जला दी जाती थी.

जब तक हम आप अपना इतिहास नहीं जानेंगे भविष्य का निर्माण नहीं कर सकते, व्यवस्थावादीयों द्वारा विषमतावाद और अंधश्रद्धावाद के यातना गृह से बाहर निकालकर शूद्रों और महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए समतावादी महापुरुषों के संघर्षों का हजारों साल का इतिहास है उन्हीं मानवतावादी महापुरुषों के संघर्षों के बदौलत आये हैं.

किसी ईश्वर, देवी, देवता की कृपा से नहीं, इसलिए इन कथित धर्मों के मकड़जाल से बाहर निकलिए और अपने समतावादी महापुरुषों बुद्ध, डा. अम्बेडकर, कबीर, रविदास, फुले, साहू, पेरियार, ललई सिंह यादव, गाडगे, नारायण गुरु, छत्रपति शाहू जी, सम्राट अशोक, बिरसा मुण्डा, मातादीन, रामस्वरूप बर्मा,

कर्पूरी ठाकुर, जगदेव बाबू कुशवाहा, कांशी राम साहब, राजा सलेश, जय बाबा वीर, चौहरमल, जगजीवन राम आदि के संघर्षों उनके विचारों को जाने, उनके बारे में उपलब्ध साहित्य पढ़ें, उन्हें आत्मसात करके वैज्ञानिकतावादी दृष्टिकोण अपनायें जागें और जगायें समाज और देश का कल्याण इसी मार्ग पर चलकर होगा. भजन कीर्तन पूजा-पाठ करने से कुछ नहीं होगा.

नोट: आज कोरोना वायरस COVID-19 के अंतराष्ट्रीय महामारी से पता चल गया है कि कोई देवी, देवता, मंदिर, चर्च, मस्जिद, में चमत्कार नही होने वाला. आज आंख नही खुली तो समझिए हम सबका पढ़ना लिखना बेकार ही साबित हो सकता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं thefire.info का इससे कोई संबंध नहीं है)

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