अब सेकुलर वाले क्या कहेंगे? क्या हिंदू अब भी खतरे में नहीं है? क्या हिंदुओं के खतरे में होने बात सिर्फ अफवाह है जो हिंदुओं के खतरे में होने की दुकान चलाने वालों ने फैलायी है?
अगर हिंदुओं के खतरे में होने की बात कोरी गप्प है, तो वह क्या है जो हाथरस में भोले बाबा के चक्कर में हुआ है. दो-चार नहीं, दस-बीस नहीं, पूरे सवा सौ से ज्यादा लोग भीड़ में कुचलकर मारे गए हैं या नहीं.
बेशुमार लोग घायल हुए हैं, सो ऊपर से. सब के सब, जी हां, सब के सब, हिंदू थे या नहीं? हिंदू खतरे में नहीं होते, तो क्या इतनी आसानी से, इतनी तादाद में मारे जाते?
हिंदू खतरे में नहीं होते तो क्या इतने खस्ता हाल इंतजामों के बाद भी, इतनी बड़ी तादाद में जुटते? बेशक, जुटने वाले खासतौर पर गरीब थे. नहीं, बाबा गरीब नहीं है, पर बाबा के भक्त जरूर गरीब थे.
अमीर बाबा के गरीब भक्त! सही है, गरीब भी खतरे में हैं, पर हिंदू तो कुछ ज्यादा ही खतरे में हैं. गरीब भी ज्यादा हिंदू ही हैं, इसलिए यह कहना मुश्किल है कि हिंदू ही गरीब होने से खतरे में हैं या गरीब ही हिंदू होने से ज्यादा खतरे में हैं. पर खतरे में दोनों हैं.
खतरे में हैं, तभी तो उनके लिए इतने खराब इंतजाम थे. खतरे में नहीं होते, तो उनके लिए भी तो वही राजा अंबानी के बेटे की शादी के लिए मुंबई में जैसे इंतजाम कराए जा रहे हैं,
उनके जैसे नहीं भी सही, उनकी उतरन के जैसे इंतजाम तो करा ही सकता था. तब न भीड़ बेकाबू होती, न भगदड़ मचती, न लोग अपने जैसों के पांवों तले कुचले जाते.
पर इंतजाम न होने से कुचले गए, इसीलिए तो कहा कि हिंदू खतरे मैं हैं. लोग भगदड़ में कुचले गए, फिर भी अगर इंतजाम होता, तो इतने नहीं मारे जाते.
मगर इतने मारे गए, क्योंकि जो कुचले गए, उन्हें फौरन अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस नहीं थी जो अस्पताल पहुंचा भी दिए गए, उनके इलाज के लिए साधन नहीं थे. डाक्टर थे भी, तो बिजली नहीं थी. हिंदू खतरे में नहीं होता, तो क्या अस्पतालों में ऐसी हालत होती?
{To be continued…}