भाई साहब! ये सतयुग, त्रेता, द्वापर सब का सब भारत का इतिहास नहीं है

BY-चन्द्र भान पाल (बी एस एस)

भाई साहब! ये सतयुग, त्रेता, द्वापर सब का सब भारत का इतिहास नहीं बल्कि ब्राह्मणों द्वारा बनाया गया झूठा काल्पनिक इतिहास है ये सिर्फ ब्राह्मणी ग्रंथों में ही मिलेगा और कहीं नहीं.

आश्चर्य होता है आप जैसे शिक्षित व्यक्ति भी इन कपोल कल्पित कहानियों पर विश्वास करते हैं. आप तर्क क्यों नहीं करते कि इनका दावा सारे संसार के इतिहास का वर्गीकरण है ?

उन युगों में पैदा हुए ईश्वर के अवतारों को तीनों लोक का मालिक बताया गया है, किन्तु इन युगों और उनमें पैदा हुए कथित जगत के पालनहार भगवानों के बारे में इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका किसी को पता ही नहीं है.

आपने पढ़ा होगा कि इनका एक-एक युग कई-कई लाख साल का होता था जबकि मानव सभ्यता के पूरे विश्व के इतिहास का अध्ययन कीजिये तो पाषाण काल से लेकर अभी तक अलग ही इतिहास है जो पुरातात्विक सबूतों के आधार पर सिद्ध भी किया जा चुका है कि कब मानव ने अग्नि का उपयोग शुरू किया,

कब से शिकारी जीवन से खेती, पशुपालन आदि करने लगे, कब से घर बनाकर बस्तियों में रहने लगे, कब से कपड़ा पहनने लगे, कब से पढ़ने-लिखने लगे? कब लोहा, तांबा, पीतल, सोना आदि का आविष्कार हुआ यह सब कुछ हजार सालों का सत्य व प्रमाणिक इतिहास है.

दूसरी तरफ ब्राह्मणों के एक-एक युग लाखों साल के होते थे और उनकी गप्प कथाओं में ऐसे-ऐसे पात्रों का वर्णन है जो तीन-तीन युगों तक जीवित रहे. जैसे-परशुराम वह सतयुग में गणेश के दांत तोड़कर उन्हें एक दन्त बनाता है,

त्रेता में सीता स्वयंवर में जाकर हंगामा करता है और द्वापर में भीष्म व कर्ण को धनुर्विद्या सिखाता है. यानी तीनों युगों में जवान सैनिक के रोल में, बूढ़ा तो होता ही नहीं, हनुमान जामवंत आदि त्रेता यानी रामायण कालीन पात्र महाभारत काल यानी द्वापर में भी अपना रोल निभा रहे हैं.

यह सब सिर्फ कहानियों में ही संभव है….वास्तव में नहीं. लोहे का आविष्कार होकर अभी चार हजार साल भी नहीं हुए फिर सतयुग से लेकर द्वापर तक फरसा लहराने वाले परशुराम व अन्य योद्धाओं के हथियार तलवार त्रिशूल आदि के लिए लोहा किस ग्रह से आयात किया गया था?

चारों धाम की स्थापना शंकराचार्य जो ब्राह्मण थे, ने सातवीं आठवीं शताब्दी में किया था उसके बाद ही धीरे-धीरे प्रचारित करते हुए आज वे उन्हें उन शूद्रों को भी अपना तीर्थस्थान स्वीकार करवाने में कामयाब हो गए जिन्हें उनके ब्राह्मण धर्म के अनुसार शिक्षा संपत्ति शस्त्र सम्मान का अधिकार ही नहीं था.

जिनकी संस्कृति श्रमण संस्कृति थी श्रमजीवी थे जो बुद्ध के अनुयायी थे, आज भी शंकराचार्य का पद ब्राह्मण के लिए ही आरक्षित है, कोई शूद्र शंकराचार्य नहीं बन सकता.

भारत में संघर्ष विषमता वादी अंधश्रद्धा वादी ब्राह्मण वाद और समतावादी मानवतावादी वैज्ञानिकता वादी बुद्धिज्म के बीच ही रहा है और आज भी जारी है. ब्राह्मणवादी शूद्रों को सत्ता के बल पर शिक्षा, संपत्ति, शस्त्र, सम्मान से वंचित करके उन्हें पूर्व की स्थिति में ले जाने के लिए प्रयासरत हैं.

आज एससी, एसटी, ओबीसी के जीवन स्तर में जो भी सकारात्मक बदलाव आये हैं वे समतावादी महापुरुषों ज्योतिबा फुले,  साहू, अम्बेडकर, पेरियार आदि के संघर्षों के बदौलत आये हैं. किंतु यह बात अभी तक अशिक्षित तो छोड़िए शिक्षित शूद्र भी नहीं समझ पा रहे हैं

और हिन्दू बनकर ब्राह्मणवाद और ब्राह्मणशाही को ही मजबूत कर रहे हैं. जिस दिन शूद्र समाज के लोगों को अपना सच्चा इतिहास और समतावाद, विषमतावाद का संघर्ष मालूम पड़ जायेगा,

वे ब्राह्मणों द्वारा थोपे गए झूठे काल्पनिक इतिहास के कल्पना लोक से बाहर निकलकर अपने समतावादी महापुरुषों के आजीवन किये गये संघर्षों,

उनके त्याग, उनके मानवतावादी, वैज्ञानिकतावादी विचारों को जानकर उसे आत्मसात करके एक जुट होकर उनके पूर्वजों को पशुतुल्य जीवन जीने को विवश करने वाले ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष करेंगे.

उन्हें भारत का शासक बनने से कोई नहीं रोक सकता. जब भारत की शासन सत्ता शूद्रों के हाथ में आयेगी तभी भारत महापुरुषों के सपनों का प्रबुद्ध व समृद्ध भारत बन सकेगा.

(Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं)

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