- ब्रिटिश साम्राज्यवाद की नीतियों के खिलाफ 63 दिनों तक किया आमरण अनशन
जतीन्द्रनाथ दास का जन्म 27 अक्टूबर, 1904 को कलकत्ता में हुआ था. इनके पिता का नाम बंकिम बिहारीदास और माता का नाम सुहासिनी देवी था.
1920 में इन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास करके आगे की पढ़ाई कर ही रहे थे कि महात्मा गांधी ने ‘असहयोग आंदोलन’ शुरू कर दिया, जिसके बाद ये भी इस आंदोलन में कूद पड़े.
इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा लेकिन कुछ दिनों बाद जब यह आंदोलन ख़त्म हो गया तो इनको जेल से रिहा कर दिया गया.
आगे दोबारा से कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी करने चले गए. उसी समय इनकी मुलाकात उस वक़्त के मशहूर क्रांतिकारी नेता शचीन्द्रनाथ सान्याल हुई
जिनसे ये काफी प्रभावित हुए और लगातार उनके संपर्क में बने रहे. भविष्य में सान्याल व अन्य क्रांतिकारियों ने एक संस्था का निर्माण किया, जिसको ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के नाम से जाना गया.
इस संस्था को बनाने में दास ने अहम किरदार निभाया था. इसके सदस्य रहते हुए बंगाल में कई क्रांतिकारियों को जोड़ा और संस्था को मजबूत किया.
अपने कामों से जल्द ही पार्टी में एक ऊँचा मुकाम हासिल कर लिया और क्रांतिकारी कामों में जोश के साथ हिस्सा लेने लगे.
बताया जाता है कि इस दौरान इन्होंने बम बनाना भी सीख लिया. भगत सिंह ने जतीन्द्रनाथ को बम बनाने के लिए आगरा आने का निमंत्रण दिया, तो वो कोलकाता से आगरा चले आये.
1929 में जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली पर बम फेंका वो बम जतिन्द्रनाथ दास के द्वारा ही तैयार किये गए थे.
14 जून, 1929 में दास को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और लाहौर षडयंत्र केस के तहत जेल में डाल दिया.
जब इन्हें जेल में डाला गया तो इन्होंने भारतीय कैदियों के साथ होने वाली बदसुलूकी को देखा. यहाँ एक तरफ ब्रिटिश कैदियों को अच्छी सहूलियतें मिलती थी,
वहीं भारतीय कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा था, इंसानों जैसा सुलूक नहीं होता था, बल्कि उनकी स्थिति जानवरों से भी दयनीय थी.
इन्होंने 13 जुलाई, 1929 को अनशन शुरू किया. इस दौरान जेल कर्मियों द्वारा इनको खाना खिलाने के लिए बहुत प्रयास किया गया, मगर इस क्रांतिकारी के मकसद को वो तोड़ने में असफल रहे.
कहा जाता है कि दास अपने अनशन के दौरान सिर्फ पानी ही पीते थे. ऐसे में जेल अधिकारी इनके बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए एक योजना बनाई.
अंग्रेजों ने पानी की जगह दूध रख दिया, जिससे इनके शरीर में कुछ ताकत बरकरार रहे. किन्तु दास सहित सभी साथियों ने पानी पीना भी छोड़ दिया.
इसके बाद दिन ब दिन इनकी हालत ख़राब होती गई. कुछ जेल अधिकारियों के समझाने के बावजूद इन्होंने अपना अनशन नहीं तोड़ा और कहा कि जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जाती तब तक हम अपना अनशन नहीं तोड़ेंगे.
जेल अधिकारियों ने इन्हें जबरदस्ती पकड़कर मुंह में दूध डाला, झटके में ही दूध इनकी साँस की नली में चला गया और दास को साँस लेने में दिक्कत होने लगी.
उनकी हालत नाजुक हो गई और अनशन के 63 वें दिन 13 सितम्बर, 1929 को जतींद्रनाथ दास ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
लाहौर से इनके शव को ट्रेन से ले जाने की तैयारी की गई, लाहौर शहर थम सा गया था. इनकी अंतिम यात्रा देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा.
इनके अंतिम यात्रा में कई महान क्रांतिकारियों ने हिस्सा लिया, इसमें सुभाष चंद्र बोस भी शामिल थे. जिस जगह पर ट्रेन रूकती वहां पर लोग इस शहीद को
श्रद्धांजलि अर्पित करते और जब इनका शव कोलकाता पहुंचा तो 5 लाख से अधिक लोग इनके अंतिम यात्रा में शामिल हुए.
{नवेनदु मथपल}