रवीश कुमार जैसे प्रसिद्ध पत्रकारों को सुनते/पढ़ते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है कि शोषक वर्ग देश की जनता के खिलाफ एक खतरनाक प्रोपोगण्डा युद्ध चला रहा है.
शोषक वर्ग की मीडिया जनता के समक्ष -1-अक्सर गलत सूचनाएं देती है 2- अक्सर झूठे आँकड़े देती है 3- अगर कहीं सूचना सही देती है, आँकडे़ सही देती है तो उसका विश्लेषण गलत तरीके से करके जनता को गुमराह कर देती है.
4- अगर सूचना सही देती है, विश्लेषण सही करती है, प्रस्तुतीकरण भी सही रहा तो मुख्य समस्या को दरकिनार करके द्वितीयक समस्याओं को ही मुख्य बना देती है. बुनियादी समस्याओं से आप का ध्यान हटा देती है.
5- कभी-कभी सूचना भी सही होती है, मुख्य समस्या भी सही उठा देती है मगर उन समस्याओं के लिए शोषणकारी मौजूदा व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराने की बजाय किसी व्यक्ति विशेष को सारा दोष मढ़ देते हैं.
उपरोक्त चार तरह की घिनौनी हरकतें गोदी मीडिया के लोग करते रहते हैं-पाँचवें किस्म की सबसे घिनौनी हरकत शोषक वर्ग की गोद से उतरे हुए
पैदल मीडिया के रवीश कुमार जैसे जनप्रिय बन चुके पत्रकार लोग करते हैं. अभिसार शर्मा, गिरिजेश वशिष्ठ, कुछ ऐसे ही जनप्रिय पत्रकार हैं
जो मुख्य समस्या मँहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी, नशाखोरी, अश्लीलता आदि जनसमस्याओं को मजबूती से उठाते तो हैं
मगर इसके लिए मौजूदा आर्थिक व्यवस्था को जिम्मेदार नहीं ठहराते बल्कि इसके लिए सिर्फ मोदी को जिम्मेदार ठहरा देते हैं.
मोदी को ही जिम्मेदार ठहराने का मतलब होता है कि अगले चुनाव में मोदी की जगह किसी दूसरे व्यक्ति को चुना जाए.
इसी तरह भाजपा को जिम्मेदार ठहराने का मतलब किसी दूसरी पार्टी को चुना जाए. इस प्रोपोगंडा का फायदा कांग्रेस, आम आदमी पार्टी या इन जैसी अन्य पार्टियों को मिल सकता है.
जबकि ये पार्टियाँ भी सत्ता में आकर वही मँहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी, नशाखोरी, अश्लीलता आदि जनसमस्याओं को बढ़ावा देती रही हैं.
मतलब इनके प्रोपोगण्डा से प्रेरित होकर जनता एक चोर को छोड़कर दूसरे चोर को चुन लेती है और फिर पाँच साल तक उस नए चोर का लात-जूता सहती रहती है.
मोदी और रवीश में बुनियादी तौर पर एकता है. दोनों ही मौजूदा अर्थनीति को जिम्मेदार नहीं ठहराते. मोदी और रवीश में सतही तौर पर अन्तर यह है कि
मौजूदा जनसमस्याओं के लिए रवीश कुमार मोदी को जिम्मेदार ठहराते हैं जब कि मोदी जी नेहरू के ऊपर सारा दोष मढ़ देते हैं.
अगर जनता को यह बताया जाता कि “मजदूरों, किसानों का शोषण करने वाली मौजूदा व्यवस्था ही तमाम जन समस्याओं के लिए
बुनियादी तौर पर जिम्मेदार है और इसका समाधान सिर्फ समाजवादी व्यवस्था ही है सत्ताधारी और विपक्ष की पार्टियाँ पूँजीवादी साम्राज्यवादी व्यवस्था की प्रतिनिधि/सेवक हैं.”
तो जनता अपनी समस्याओं से निजात पाने के लिए काँग्रेस, भाजपा को वोट देने की बजाय वास्तविक समाधान के लिए लड़ती अर्थात समाजवादी व्यवस्था के लिए संघर्ष करती.
शोषक वर्ग को रवीश कुमार जैसे पत्रकारों की जरूरत इसीलिए है ताकि जनता मौजूदा शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ न खड़ी हो सके यानी
समाजवादी व्यवस्था के लिए संघर्ष न करे और किसी नयी व्यवस्था की बजाय नये व्यक्ति को चुनकर जनता अपना गुस्सा उतारती रहे.
मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ जनमत तैयार करना जनहित का काम है जबकि मौजूदा व्यवस्था को बचाने के लिए भाजपा या कांग्रेस जैसी
किसी पार्टी या मोदी या राहुल जैसे किसी व्यक्ति के खिलाफ जनमत तैयार करना शोषक वर्ग का काम है. रवीश जैसे पत्रकार बड़ी ईमानदारी से शोषक वर्ग का यह काम कर रहे हैं.
इसलिए ईमानदारी को सबसे बड़ा तोप न समझें, शोषक वर्गों के कई ऐसे नेता हैं जो घूस के पैसे को हाथ नहीं लगाते मगर हम उन्हें अपना आदर्श नहीं मानते.
हम तो काकोरी के डकैतों को अपना आदर्श मानते हैं, हमारे लिए किसी की ईमानदारी बहुत मायने नहीं रखती, बल्कि वह ईमानदारी किसके पक्ष में है, यही बात हमारे लिए सबसे ज्यादा मायने रखती है.
अत: ईमानदार पत्रकारों/पार्टियों/व्यक्तियों की ईमानदारी किसके पक्ष में है, इसका हमेशा ख्याल रखें. ईमानदार लोगों की भी बातें जरूर सुनना गलत नहीं है मगर उनकी बातों को आँख मूंद कर मत मानो.
शोषक वर्ग के प्रोपोगण्डे में फँसने से बचने का एक ही उपाय है व्यक्तियों, पार्टियों, संस्थाओं, तथ्यों या घटनाओं को वर्ग दृष्टिकोण से देखो, संदेह करो और मुद्दा बनाओ.
(रजनीश भारती, जनवादी किसान सभा)
~DISCLAIMER: ये रजनीश भारती के निजी विचार हैं इससे ‘आगाज़ भारत न्यूज’ का कोई सरोकार नहीं है~