BY-राम आशीष
कानपुर में घटी नृशंस पुलिसकर्मियों सहित अधिकारियों का साजिशन हत्या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार और उसके पैरोकारों से कई सवाल पूछता नजर आ रहा है.
लोग वर्तमान मुख्यमंत्री योगी के वर्ष 2017 में दिए गए उस वक्तव्य को कैसे भुला सकते हैं जब उन्होंने राज्य से सभी माफियाओं और गुंडों को समाप्त करने का वादा किया था.
एक बड़ा प्रश्न यह भी उभर कर सामने आ रहा है कि पिछली हुई हिंसक वारदातों में शामिल पिछड़े और दलित गुंडों के साथ जिस कड़ाई से योगी ने निपटा था अब वैसे ही विकास दुबे के खिलाफ भी निबटेंगे?
8 पुलिसकर्मियों के हत्यारे का नाम विकास दुबे है, चूंकि नाम में दुबे है इसलिए वह आतंकवादी न होकर “हिस्ट्रीशीटर” है. आतंकवादी जैसा सम्मानित प्रतीक पाने के लिए नाम में “मुहम्मद” होना हमारे देश में पहली क्वालिफिकेशन है.
लेकिन यदि हत्यारोपी के सरनेम में यादव होता तो अब तक कहीं से कहीं का तार उठाकर उसे सपा सरकार से जोड़ दिया गया होता, अगर जाट होता तो चलो छोङो (खालिस्तानी, आतंकवादी, देशद्रोही और भी बहोत कुछ…)
और यदि गलती से मुसलमान निकल गया होता तो अब तक सिमी के बैंक अकाउंट से उसका आधार कार्ड जुड़ चुका होता, फिर तो ये सोने पर सुहागा होता, आखिर मुसलमान टीवी मीडिया का फेवरेट टॉपिक है.
लेकिन दुर्भाग्य से हत्यारोपी दुबे निकल आया तो अब किसी टीवी पर कोई डिबेट नहीं चलनी चाहिए क्योंकि दुबे जी हत्यारोपी हैं, चौबे जी सम्पादक हैं, त्रिवेदी जी रिपोर्टर हैं,
चतुर्वेदी जी मालिक हैं, पांडे जी कर्मचारी हैं, शर्मा जी मंत्री हैं, द्विवेदी जी विधायक हैं, शुक्ला जी कार्यकर्ता हैं, भागवत जी सरसंघचालक हैं.
यही तो है “वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति”
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