महात्मा बुद्ध ने बताए प्रकृति के तीन कठोर नियम, पढ़ें, समझें और जीवन में उतारें

पूरी दुनिया में सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले तथागत बुद्ध जिन्हें ‘लाइट ऑफ एशिया’ भी कहा जाता है, आज बुद्ध पूर्णिमा के दिन उनके अनुयाई याद करते हुए सिद्धांतों को साझा कर रहे हैं.

बुद्ध की पहचान व्यक्ति सुधारक के रूप में जिन्होंने कर्मकांड तथा पाखंड का कड़ा प्रतिकार करते हुए आत्म दीपो भव: का पाठ पढ़ाया.

इसके मुताबिक आपके अंदर व्याप्त अंधेरा यानी अज्ञानता को केवल अपने ही प्रयास से आप दूर कर सकते हैं. इसी क्रम में प्रकृति के तीन नियमों की चर्चा बुद्ध ने किया जो इस प्रकार हैं-

1. प्रकृति का पहला नियम:

यदि बीजों को उपजाऊ खेतों में नहीं बोया गया तो प्रकृति ऐसे खेतों को घास-भूस से भर देती है. उसी प्रकार यदि मानव के मन में बचपन से ही, सकारात्मक विचारों से नहीं भरा गया तो,

नकारात्मक विचार स्वयं दिमाग में निर्मित हो जाते हैं जो दिमाग पर बोझ बन जाते हैं और अपने बुद्धि का प्रयोग करना भूल जाते हैं, बाद में अंधविश्वास, पाखंडवाद का कारण बन जाते हैं.

2. प्रकृति का दूसरा नियम:

जिसके पास जो होता है, वह उसे ही बांटता है-खुश खुशी बाटता है। दुःखी दुःख बाटता है। ज्ञानी ज्ञान बाटता है।
भ्रमीत भ्रम बाटता है।डरपोक डर बाटता है।

3. प्रकृति का तीसरा नियम:

जीवन में जो मिला है उसे पचानना सीखो, उसी में संतुष्ट रहो. कारण, भोजन न पचने पर गैस रोग बढ़ता है. पैसा न पचने पर दिखावा बढ़ जाता है.

बात न पचने पर चुगली बढ़ जाती है. प्रशंसा न पचने पर अभिमान बढ़ता है. आलोचना न पचने पर शत्रु बढ़ते है. गोपनीयता नहीं बनी रही तो खतरा बढ़ जाता है. दुःख नही पचा तो निराशा बढ़ जाती है और सुख नही पचा पाए तो पाप बढ़ जाता है.

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