जल प्रबंधन में गुजरात अव्वल जबकि राजस्थान उत्तर प्रदेश और दिल्ली फिसड्डी सिद्ध हुए हैं


BY- SAEED ALAM KHAN


जल है तो कल है, कहने और सुनने में बड़ा अच्छा लगता है किन्तु यदि सच्चाई देखी जाये तो लाख समझाने के बाद भी हमारी सेहत पर कोई असर पड़ता नहीं मालूम होता है.

आपको बता दें कि नीति आयोग ने जल प्रबंधन सूचकांक 2.0 जारी किया है जिसमे इस तथ्य का खुलासा हुआ है कि देश के सभी बड़े राज्य पानी को बचाने में कोई मह्त्वपूर्ण योगदान नहीं दिया है.

जल ही जीवन है, इस कटु सत्य को जानने के बाद भी हम अपनी आदतों में कोई सुधार नहीं ला रहे हैं और बड़ी ही लापरवाही के साथ पानी की बर्बादी करते जा रहे हैं.

विचारणीय पहलू यह है कि देश की बड़ी आबादी लगभग (48 प्रतिशत) इन राज्यों में निवास करती है तथा यहीं से भारी मात्रा में अनाज (खाने वाली) फसलों जैसे- गेहूँ, चावल, मक्का, बाजरा आदि का भी उत्पादन करते हैं

और देश की अर्थव्यवस्था में 35 प्रतिशत का भी सहयोग देते हैं लेकिन यहाँ भी जल संरक्षण को लेकर भारी जागरूकता की कमी विद्यमान है.

रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रिय राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार राज्यों की हालत सबसे सोचनीय है हालाँकि इस सर्वेक्षण में गुजरात को अव्वल दिखाया गया है.

तत्पश्चात आंध्रप्रदेश, मध्य प्रदेश, गोवा कर्नाटक और तमिलनाडु का स्थान आता है वहीं अगर पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों का जिक्र करें तो हिमाचल प्रथम स्थान प्राप्त किया है तथा उत्तराखण्ड, त्रिपुरा और असम बनाई है.

जल की बर्बादी से जुड़ा तथ्य:

देश में रोजाना लापरवाही से हो जाता है 49 अरब पानी की बर्बादी

वर्तमान में भारत सहित दुनिया के 17 देशों में जल संकट मंडरा रहा है

ग्रामीण क्षेत्रों के पानी को शहर चूसना शुरू कर दिए हैं

बेहतर प्रशासनिक नीति के अभाव में कहीं सूखा की समस्या है तो कहीं अतिशय बाढ़ जिसके कारण अपार जन-धन की क्षति होती है. प्रत्येक वर्ष सरकार अपने राजस्व का

बड़ा हिस्सा इनसे प्रभावित स्थानों के प्रबंधन तथा जन सुरक्षा देने में कर देती है. यदि यही स्थिति रही तो विश्व में अगला युद्ध पानी के लिए ही होगा, इसमें कोई शक नहीं है.

यद्यपि इस सच्चाई को अनेक देशों के विद्वानों ने भविष्यवाणी कर दिया है.

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