नियोजित लूट या वाकई धार्मिक संस्था!

BY- प्रेमाराम सियाग

धर्म एक सामाजिक संस्था है इसको चलाने के लिए मैन, मनी व मैटेरियल की जरूरत पड़ती है, धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए फंडिंग की व्यवस्था होती है.

ईसाई धर्म की सर्वोच्च बॉडी वेटिकन का पॉप होता है और वहीं से दुनियाँ भर में उनकी शिक्षा, प्रचार, प्रसार या सोशल वेलफेयर के कार्य संचालित होते है, ऊपर से नीचे तक एक चेन बनी हुई है.

जहां तक मैंने पढ़ा व देखा है उसके अनुसार इस्लाम मे भी फंडिंग की व्यवस्था है. मस्जिद का निर्माण करना हो या अन्य धर्म संबंधित कार्य करने हो, उसके लिए पैसे वाले लोग अपनी अपनी हैसियत से फंडिंग करते है.

ब्राह्मण धर्म दुनियाँ का ऐसा धर्म है जो फंडिंग के साथ-साथ दानपात्र, भिक्षा-पात्र की व्यवस्था जरूर करता है. आप दुनियाँ के हर धर्म का अध्ययन कीजिये,

उसके बारे में जानिए!दुनियाँ का सबसे क्रूर धर्म ब्राह्मण धर्म है!

हर धर्म कहता है कि गरीबों, मजलूमों, बीमारों, बेबस, लाचार लोगों की मदद करो मगर ब्राह्मण धर्म के ठेकेदार कहते है-

“तुम्हे इन दुखों से बाहर निकलना है तो निकाल 21, 51, 101 रुपए. आजकल तो इनकी रेट्स नासा के वैज्ञानिकों की सैलरी से भी ज्यादा हो गई है.”

यहां लोग संसाधनों के अभाव के कारण गरीब नहीं है, लाचार नहीं है बल्कि ब्राह्मण धर्म की वर्ण व जाति व्यवस्था के कारण गरीब है.

आप सौ सवर्णों के घर घूमकर देखिये 90% से ज्यादा लोगों के पास कम से कम एक महीने के खाने-पीने का इंतजाम किया हुआ मिलेगा और दूसरी तरफ सौ दलितों के घर घूम लीजिये उसमे से 10% लोगों के घर बमुश्किल ऐसा मिलेगा.

इस गरीबी का कारण राज्य व्यवस्था नहीं है जिसका एकमात्र समाधान सत्ता के पास खोजा जा रहा है. भारत की गरीबी, भारत का पुरुषार्थ, भारत की वैज्ञानिकता,

भारत की तार्किकता सब कुछ ब्राह्मण धर्म की गुलामी में पहले तो पैदा ही नहीं हो पाई और आजादी के बाद कुछ प्रयास हुए तो वो भी उलझकर मृतप्रायः पड़ी है.

मंदिरों के पास अरबों रुपयों की संपदा है और रोज एकत्रित की जा रही है. अम्बानी-अडानी सोने का मुकुट चढ़ाए या धर्मशाला बनवा दें उससे किसी को कोई आपत्ति नहीं है

मगर लाचार लोगों की लाचारगी का सौदा धर्म के नाम पर पाखंड व अंधविश्वास से किया जाए तो धर्म कहाँ बचता है?

एक मजे की बात इस्लाम में भी भारतीय उपमहाद्वीप में हुई है. कबीर, रैदास, दादू, नानक, दरियाव की तरह धार्मिक कट्टरता से बचाने के लिए इस्लाम में भी सूफी परंपरा चली.

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कुछ सीखा हो या न सीखा हो मगर पंडितों से पीर बाबा की मजार पर चढ़ावे/दान की कला इन्होंने भी सीख ली. वैसे काल्पनिक सिद्धांत गढ़ने में भारतीय पंडितों का मुकाबला दुनियाँ में कोई नहीं कर सकता.

गुलाम मानसिकता के लोग हर नई चीज को आत्मसात करने में बड़ी आनाकानी करते है. इसलिए इन्हीं काल्पनिक सिद्धांतों व मिथकों के इर्द-गिर्द की स्वीकार्यता होती है.

अंधेरे के रहस्यों में भटकाने का ही दूसरा नाम ब्राह्मण धर्म है. हर सवाल का एक ही जवाब “आस्था पर कैसा सवाल?” भय का माहौल धर्म को मजबूत करता है.

भय का माहौल राजा को मजबूत करता है. अगर धर्म व राजसत्ता मजबूत होती है तो जनता कमजोर होती है, यह दुनियाँ का यूनिवर्सल नियम है.

मंदिरों की जमीनें, पुजारियों के नाम, साधुओं को कैबिनेट मंत्री का दर्जा, साधुओं को पेंशन और यह सब कार्य कर कौन रहा है? राजा ही तो कर रहा है,

वर्णव्यवस्था के रचनाकारों ने मिथ्या रचनाएं ऐसे कर डाली कि ब्राह्मण कहे या मान्यता दें तभी राजा को असली राजा अर्थात क्षत्रीय माना जायेगा

और इसी जाल में उलझकर राजाओं ने परजीवी जमात को हजारों सालों तक पाला व गरीबों का धन बर्बाद करके मुफ्तखोरों की फौज इस देश मे खड़ी कर दी.

कोई ऑर्गेनाइज्ड सिस्टम नहीं है, कोई फंडिंग का गरीबों के कल्याण या मानवता की बेहतरी के लिए उपयोग नहीं है.

जो धर्म के नाम पर फंडिंग हो रही है उससे क्या उम्मीद करें जब हर मील/कोस की दूरी पर गरीब जनता को पाखंड व अंधविश्वास में उलझाकर लूटने का आउटलेट खोल रखा हो.

मुझे धर्म के नाम पर मंदिरों में भगवान को खुलेआम रिश्वत देकर सुख-संपदा हासिल करने की मनोकामना करने वाले लोग मनोरोगी से लगते है और गरीब,

बेबस, लाचार, बीमार, भूखे लोगों को सुख का लालच, समस्याओं के समाधान का पोस्ट-डेटेड चेक देने का दावा करने वाले लोग जाहिल किस्म के व मानवता के कलंक लगते है.

लोकतंत्र व संविधान की स्थापना के कारण एक विचित्र सोच इस देश मे जरूर पैदा हुई है. जनता सवाल राजनेताओं से करने लगी है और

आस्था पाखंड व अँधिवश्वास में रखती है, लुटेगी पाखंड के अड्डो पर और रोना-धोना लोकतांत्रिक संस्थाओं के सामने करेगी.

नेताओं को देश गढ़ना था! एक राष्ट्र के रूप में देश को रिप्रेजेंट करने की सोच विकसित करनी थी! नागरिकों को जागरूक,

वैज्ञानिक सोच से लबरेज व मजबूत बनाना था मगर धर्म व सत्ता के गठजोड़ ने जागती उम्मीदों पर पानी फेर दिया.

किसी राजा को पंडितों द्वारा प्राचीनकाल में भगवान कैसे घोषित किया जाता था इसकी बानगी देखनी हो तो संलग्न वीडियो देखिये, पंडितों को फाइनेंस की गारंटी दो और पंडित जाहिल से जाहिल किस्म के राजाओं को राम घोषित कर देंगे.

दान भगवान को नहीं गरीबों को दिया जाता है, दान दलालों को नहीं भूखों को दिया जाता है. दान धर्मगुरुओं को नहीं बीमार, लाचार लोगों को दिया जाता है.

धर्म की सत्ता व सियासत की सत्ता के शीर्ष से लेकर नुक्कड़ तक मजबूती से खड़ी मुफ्तखोरों की जमात को देश के करोड़ों गरीब लाचार लोग दान किस हैसियत से दे रहे है और यह जमात किस नैतिकता से ले रही है?

आनंद लीजिये राम राज्य पार्ट-2 अर्थात मोदी युग वाले रामराज्य के आगाज का!

 

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