कई लोग ऐसा मानते है कि कृषि के अविष्कार से महिलाएं करीब से जुड़ी रही हैं. कई सामाजिक वैज्ञानिक तो यहां तक मानते है कि महिलओं ने ही कृषि की खोज की होगी.
लेकिन बाद के दौर में कृषि को केवल पुरुषों के पेशे के तौर पर पेश किया गया हालांकि खेतों में महिलाएं पुरुषों के बराबर काम करती हैं.
विश्व में 40 करोड़ से अधिक महिलाएं कृषि के काम में लगी हुई हैं, लेकिन 90 से अधिक देशों में उनके पास भूमि के स्वामित्व में बराबरी का अधिकार नहीं हैं.
हमारे देश में भी ऐसे ही हालात हैं. महिलाओं को मेहनत करने के बावजूद न तो पहचान मिलती है और न ही अधिकार. मैरीलैंड विश्वविद्यालय तथा
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा 2018 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत में कृषि में कुल श्रम शक्ति का 42 प्रतिशत महिलाएं हैं,
लेकिन वह केवल दो प्रतिशत से भी कम कृषि भूमि की मालिक हैं. ‘सन ऑफ द सॉइल’ शीर्षक से वर्ष 2018 में आए ऑक्सफेम इंडिया के एक सर्वे के अनुसार
“खेती-किसानी से होने वाली आय पर सिर्फ 8 फीसदी महिलाओं का ही अधिकार होता है. पिछले कुछ वर्षो में महिला किसानों की एक तरह से पहचान बन रही है.”
परन्तु कृषि में बड़ा योगदान देने वाली महिला खेत मज़दूरों का जैसे कोई अस्तित्व ही नहीं है. कृषि के बारे में होने वाले बड़े से बड़े चिंतन शिविरों, कार्यशालाओं,
सरकारी कार्यक्रमों, यहां तक कि बड़े आंदोलनों में भी महिला खेत मज़दूरों का जिक्र तक नहीं आता है. उनकी समस्याओं को उठाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.
महिला खेत मज़दूरों की गंभीर और अलग समस्याएं है, जिनकी न तो पहचान की जाती है और न इसकी जरुरत समझी जाती है.
खेत मज़दूर महिलायें आम तौर पर कृषि में सबसे मुश्किल काम करती हैं, लेकिन उनको सबसे कम मज़दूरी मिलती है, उन्हें कई स्तरों पर शोषण और भेदभाव का शिकार होना पड़ता है.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में महिला किसानों (मुख्यतः खेती-किसानी पर निर्भर और सीमांत) की संख्या 3.60 करोड़ थी,
तो महिला खेत मजदूरों (मुख्यतः खेती-किसानी पर निर्भर और सीमांत) की संख्या 6.15 करोड़ थी. गौरतलब है कि खेतों में हर उम्र की महिलाएं मज़दूरी करती है.
जहां 5-9 साल की उम्र की बच्चियां भी मजदूरी करती हैं, वही 80 साल से ज्यादा उम्र की लाखों महिलाएं भी मज़दूरी के लिए मज़बूर है.
यह दर्शाता है कि खेत मज़दूरों, विशेष तौर पर महिला खेत मज़दूरों के जीवन में सामाजिक सुरक्षा जैसी कोई चीज नहीं हैं.
ज्यादातर सामाजिक तौर से वंचित तबकों की महिलाएं खेत मज़दूर होती है. 81% महिला खेत मजदूर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और
अन्य पिछड़े तबकों से हैं और उनमें से 83% भूमिहीन हैं, या छोटे और सीमांत किसानों और बंटाईदारों के परिवारों से संबंधित हैं.