ये लो कर लो बात, विपक्षियों के हिसाब से एक बार फिर डैमोक्रेसी का मर्डर हो गया. तमाचा-वमाचा भी नहीं, लात-घूंसा भी नहीं, लाठी-वाठी भी नहीं, सीधे मर्डर
और वह भी मोदी जी और महादेव की नगरी, काशी में. कब, कैसे? मोदी जी की नकल उतारने वाले कॉमेडियन श्याम रंगीला को, मोदी जी के खिलाफ चुनाव जो नहीं लडऩे दिया जा रहा.
यानी डैमोक्रेसी तभी तक जिंदा रहेगी, जब तक कॉमेडियन को चुनाव लड़ने दिया जाएगा और वह भी मोदी जी के खिलाफ. क्या मजाक है-वो ही अगर डैमोक्रेसी हुई, तो कॉमेडी शो क्या होगा.
फिर अगर श्याम रंगीला को चुनाव में खड़े नहीं होने दिया गया, तो इसमें मोदी जी कहां से आ गए? जो कुछ भी हुआ है, नियमानुसार हुआ है.
नियमानुसार ही पर्चा दाखिल हुआ तो नियमानुसार ही पर्चा बाद में खारिज भी हो गया. इसमें मोदी जी को तो छोड़ ही दो, डैमोक्रेसी भी कहां से आ गयी?
या विरोधी यह कहना चाहते हैं कि कामेडियनों पर कोई नियम-कायदा लागू ही नहीं होना चाहिए? जो भी कॉमेडियन चाहे, मुंह उठाकर पीएम जी के खिलाफ चुनाव लडऩे के लिए चला आए;
तब तो चल ली डैमोक्रेसी-पीएम के चुनाव क्षेत्र में कॉमेडियनों की लाइनें लग जाएंगी, लाइनें. माना कि मोदी जी भी अच्छी-खासी कॉमेडी कर लेते हैं, लेकिन रहेंगे तो पार्ट टाइम कॉमेडियन ही.
चुनाव आयोग फुल टाइम वाले श्याम रंगीला का, पार्ट टाइम वाले मोदी जी से मुकाबला कैसे होने दे सकता था. आखिर, डैमोक्रेसी में जोड़ भी तो बराबर का होना चाहिए,
यानी लेवल प्लेइंग फील्ड, मदर ऑफ डैमोक्रेसी वाला चुनाव है-लाफ्टर चेलेंज थोड़े ही है. मोदी जी कॉमेडी के खिलाफ बिल्कुल नहीं हैं.
कॉमेडियनों के चुनाव लड़ने के खिलाफ भी नहीं हैं. उल्टे वह तो कॉमेडियनों की एकता चाहते हैं, ताकि देश-दुनिया में कॉमेडी खूब फले-फूले.
कॉमेडी इतनी फले-फूले कि डैमोक्रेसी की पूरी कॉमेडी हो जाए. इसीलिए, मोदी जी नहीं चाहते हैं कि चुनाव में कॉमेडियन के खिलाफ कॉमेडियन खड़ा हो.
कॉमेडियन को कॉमेडियन हराएगा, तब भी हार तो कॉमेडी की ही होगी. फिर श्याम रंगीला तो मोदी जी की नकल ही करता है.
जब असली मौजूद है, तो पब्लिक को नकल दिखाकर कंफ्यूज क्यों करना? रही बात डैमोक्रेसी की तो रंगीला अब तक बाहर है,
इतनी डैमोक्रेसी क्या कम है? अब चुनाव भी लड़ना है-ये टू मच डैमोक्रेसी की मांग नहीं हो गयी क्या?