Chhatisgarh: खुद को विद्वान मानने वालों की यही सबसे बड़ी प्राब्लम है. इनका बस चले तो ये तो मोदी जी को कोई बड़ा काम करने ही नहीं दें; मोदी जी को इतिहास की शिला पर अपना नाम गहराई तक खुदवाने ही नहीं दें.
मोदी जी ने नोटबंदी करायी तो भाई लोगों ने फेल-फेल का हल्ला मचा दिया. गिन-गिन के बताने लगे कि हजार-पांच सौ के सारे बंद किए गए नोट तो बैंकों में लौटकर आ गए
यानी काला धन पकड़ना तो दूर, अगर कोई काला धन था भी तो नोटबंदी में वह भी सफेद हो गया. ऊपर से नोटबंदी के बाद नकदी का चलन बढ़ और गया.
एक देश, एक टैक्स के चक्कर में मोदी जी ने जीएसटी लगायी तो भाइयों ने छोटे कारोबारियों की कमर टूटने का हल्ला मचा दिया, जो हल्ला अब तक मच ही रहा है.
बीच में कोविड आ गया और मोदी जी ने सोचा कि आपदा को अवसर बनाकर एक बड़ा काम कर दें और पूरे देश पर लॉकडाउन लगा दिया– दुनिया का सबसे तगड़ा लॉकडाउन.
ताली-थाली बजवाई, सो ऊपर से. पर मजाल है कि इन भाइयों के मुंह से तारीफ का एक लफ्ज भी निकला हो. उल्टे मोदी जी पर इकॉनामी का भट्टा बैठाने की तोहमत और लगा दी और वही छोटे कारोबारियों की मौत का रोना.
अब मोदी जी ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ लाने चले हैं तो भाई लोग उसमें भी टांग अड़ाने से बाज नहीं आ रहे हैं. कह रहे हैं कि आज वन नेशन वन इलेक्शन सही, पर कल वन नेशन नो इलेक्शन आएगा.
ये रास्ता ‘वन नेशन नो इलेक्शन’ तक भी जाएगा बल्कि कुछ लोगों ने वन नेशन, नो इलेक्शन के बाद की भी बात करनी शुरू कर दी है. कह रहे हैं कि बात निकलेगी तो दूर तक जाएगी–अंत में, ‘नो इलेक्शन, नो नेशन’ तक.
पर बात दूर तक जाएगी तो तब, जब मोदी जी जाने देंगे. अगर मोदी जी वन नेशन वन इलेक्शन पर ही स्टॉपर लगा देंगे तो? यह सच है कि मोदी जी को वन नेशन में वन इलेक्शन,
सिर्फ इसलिए नहीं लाना है कि इतना बड़ा काम, आजादी के बाद सत्तर साल में कोई नहीं कर पाया–न नेहरू, न इंदिरा गांधी, न राजीव गांधी, और तो और, अटल जी भी नहीं.
(To Be Continued…)