शहादत दिवस: गाँधी व्यक्ति नहीं विचार है जिसे कभी नहीं मारा जा सकता है

(सईद आलम खान की कलम से)

दुनिया में ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक आइंस्टीन ने गांधीजी के विषय में लिखा है कि-“आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से यह विश्वास करेंगी कि

हाड़ मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता फिरता था.” जी हां, हम उसी महान व्यक्ति की याद में 30 जनवरी को शहादत दिवस के रूप में मनाते हैं.

कारण यह रहा कि भारत का ही एक सनकी व्यक्ति नाथूराम गोडसे जो कुछ पूर्वाग्रहों से ग्रसित होने के कारण गोली मारकर उनकी हत्या कर दिया.

तारीखों में ऐसा लिखा गया है कि 30 जनवरी, 1948 की शाम 4:00 का वक्त था. उस दिन गांधी जी ने सरदार पटेल को बातचीत के लिए बुलाया था.

पटेल निर्धारित समय पर अपनी बेटी मणिबेन के साथ गांधी जी से मिलने पहुंच भी गए थे. ऐसी उम्मीद थी कि प्रार्थना सभा के बाद वह गांधीजी से मुलाकात करेंगे.

किंतु शायद प्रकृति को कुछ और ही मंजूर था, पटेल जी के साथ बैठने के बाद प्रार्थना के लिए जाते समय गोडसे ने गांधी जी पर एक के बाद एकगोलियाँ चला दिया जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई.

उस समय उनकी आयु 78 वर्ष की थी. दिल्ली के तुगलक रोड थाने में गोडसे के विरुद्ध एफआईआर की कॉपी उर्दू में लिखी गई थी.

आज भी वह कॉपी संभाल कर रखी गई है. गांधीजी ने अपने जीवन में सत्य और अहिंसा को हथियार बनाकर लगातार ब्रिटिश

हुकूमत के विरुद्ध संघर्ष करते रहे और इन्हीं के बल पर अंग्रेजों को देश से निकालने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.

स्वतंत्रता संघर्ष में किसान, मजदूर, क्रांतिकारियों से लेकर उन सभी लोगों को नमन और श्रद्धांजलि दिए जाने की जरूरत है जो छिपे तौर पर ही ब्रिटिश सरकार को लोहे के चने चबवा दिए.

अभी हम गणतंत्र दिवस के 74वीं हुई वर्षगांठ मनाए हैं किंतु हमारे देश में ऐसी बहुत सारी समस्याएं हैं जिनको हल किया जाना शेष है.

मसलन छुआछूत हमारे समाज के लिए एक कोढ़ है जिसके विरुद्ध गांधीजी ने सदैव संघर्ष किया. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के 75 वर्ष में

हम पहुंच कर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं किंतु राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में ऐसी कई जगहों से दलितों के विरुद्ध शोषण, अत्याचार और हिंसात्मक घटनाओं से हमारा सामना हुआ है.

जब हम समाज के इस हाशिए पर चले गए वर्ग को सुरक्षा प्रदान कर देंगे तभी हमारी आजादी की सार्थकता पूर्ण होगी.

फिलहाल गांधीजी के आदर्शों को अभी भी पूरा कर पाने में पूरी तरह सफल नहीं हुए हैं. हमें ऐसी भी कई उदाहरण विगत के वर्षों में मिले हैं

जब गांधी जी की प्रतिमा पर प्रतीकात्मक हत्या किए जाने के वीडियो और फोटो सोशल मीडिया के जरिए उपलब्ध हुए हैं.

ऐसे विक्षिप्त मानसिकता वाले लोगों से निपटने की जरूरत है. गांधी जी के शहादत को तभी पूर्ण माना जाएगा जब हम उनके आदर्शों को पूर्णतः लागू करें.

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