समसामयिक विश्व में वैश्विक आतंकवाद से निपटने के लिए गाँधीवादी विचारधारा की जरूरत है


BY-SAEED ALAM KHAN


गाँधीजी एक व्यक्तित्व नहीं बल्कि युग पुरुष और युग द्रष्टा थे यह तथ्य उनकी विचारधारा से अक्षरशः उभरकर सामने आ गए हैं, तभी तो विश्व के अनेक देश उनके सिद्धांतों में आतंकवाद के सफाये का रास्ता ढूँढ रहे हैं.

दुनिया में आज विभिन्न देशों में घटने वाली घटनाएं हमें तेजी से स्वयं का आत्मविश्लेषण करने को प्रेरित कर रही हैं और यह प्रश्न उठा रही हैं कि जब हर जगह विकास का ताना-बाना बुना जा रहा है

फिर इतनी नृशंस घटनाएं क्यों घट रही हैं? जैसे- बम ब्लास्ट, मानव तस्करी, महिलाओं का शोषण, घरेलू हिंसा, भ्रूण हत्या, पर्यावरण विनाश, जंगली जानवरों का अवैध शिकार आदि.

आज भले ही हमने अनेक मशीनों का अविष्कार करके मानव जीवन को सुखकारी और वैभवशाली बना लिया है किन्तु अब इन्हीं मशीनों का सहारा लेकर ऐसे दर्दनाक अपराधों को भी अंजाम दिया जा रहा है कि सम्पूर्ण मानवता शर्मसार हो जा रही है.

हमारा भारत बुद्ध, गाँधी और टैगोर का देश है जिन्होंने विश्व के समक्ष मानवता को स्थापित करने की वकालत की,  वैश्विक स्तर पर सामाजिक समरसता का पाठ पढ़ा कर आपसी भाईचारे का संदेश दिया,

किन्तु आर्थिक सोच की अंधी दौड़ ने चाहे लोगों को जो कुछ भी भौतिक संसाधन उपलब्ध कराया हो….. उनका सुख चैन छीन लिया है. इसका एक बड़ा उदहारण निरन्तर अपराध का चढ़ता हुआ आंकड़ा है

जो देश ही नहीं विदेशों में भी देखा जा सकता है. समाज की छोटी इकाई परिवार से लेकर देश तक में ऐसी हृदय विदारक वारदातें दर्ज हैं जो हमारी कार्यप्रणालि को कटघरे में खड़ा करती हैं.

संभवतः यही वजह है कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने दिल्ली के प्रगति मैदान में चलने वाले विश्व पुस्तक मेला 2020 में कहा है कि-

“जब दुनिया भर में आतंकवाद की घटनाएं घट रही हैं…..निजी हितों से शांति और भाईचारे को खतरा है तब ऐसे में गाँधी की सर्वाधिक आवश्यकता है.”

दरअसल, आतंकवाद धर्म, सीमा अथवा राष्ट्रीयता का सम्मान नहीं करता बल्कि मात्र विनाश करता है ऐसे में शांति का रास्ता ही बचता है जो कि गाँधी सोच का केंद्र बिंदु है

और इसे मानवीय नैतिकता और बुद्धिवादी एकजुटता के आधार पर स्थापित किया जा सकता है. चुँकि हम जानते हैं कि राजनैतिक और आर्थिक समझौते अपने बल पर दीर्घकालिक शांति नहीं बनाये रख सकते हैं

इसीलिए अहिंसा का मार्ग स्वतः बलवती हो जाता है. जरूरत इस बात की है कि हम आदर्शवादी आलाप छेड़ने से ज्यादा उनको अपनाने पर जोर दें तभी मानवता को बचाया और बढ़ाया जा सकता है,

यह चाहे राष्ट्र स्तर पर हो अथवा वैश्विक धरातल पर.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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