मोदी को मुसलमानों पर सरकारी ज़ुल्म क्यों नहीं दिखता

BY-HISAMUDDIN SIDDIQUI

दिल्ली से उत्तर प्रदेश और गुजरात तक कोरोना वबा (महामारी) और लाकडाउन के दौरान बीजेपी सरकारों ने मुसलमानों के खिलाफ ज्यादतियां और जुल्म करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया.

मुसलमानों और उनके साथ खड़े हिन्दुओं के खिलाफ जिस किस्म की कार्रवाइयां हुई और अब भी हो रही हैं उनपर एक नजर डालने से दो बातें पूरी तरह साफ हो जाती हैं. एक यह कि अदालतें इंसाफ कर पाने की हैसियत में नहीं रह गई हैं, वह मजबूर और बेबस दिख रही हैं

तथा मुसलमानों के मामलात में जुल्म करने वाले मुल्जिम, गवाह और मुंसिफ सब कुछ मरकज की मोदी और प्रदेश की बीजेपी सरकारें ही हो गई हैं. दूसरी बात यह कि वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ का जो नारा दिया था वह पूरी तरह दिखावा और देश, दुनिया को बेवकूफ बनाने के लिए था.

क्योंकि अमली जिंदगी में बीजेपी सरकारें न तो मुसलमानों के साथ हैं न उनका विकास किया जा रहा है और न ही उन्हें सुकून के साथ जिंदा रहने दिया जा रहा है. इन तमाम ज्यादतियों के लिए प्रदेश सरकारों को मूरिदे इल्जाम ठहराना भी अब बेकार है.

Coronavirus: India under 21-day lockdown to stop COVID-19 spread ...

तमाम कार्रवाइयों से वाजेह (स्पष्ट) होता है कि सब कुछ वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी की मर्जी और पुश्तपनाही में हो रहा है. पूरा देश जानता है कि इस वक्त देश में मोदी की मर्जी और इजाजत के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता है.

पार्लियामेंट में शहरियत तरमीमी कानून (सीएए) और अनलाफुल एक्टिवीटीज प्रीवेंशन एक्ट को मजीद मजबूती देने का एक्ट पास कराते वक्त होम मिनिस्टर अमित शाह ने देश से साफ-साफ वादा किया था कि यूएपीए का किसी के भी खिलाफ बेजा इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.

शहरियत कानून (सीएए) के लिए उन्होंने कहा था कि यह कानून किसी भी तबके खुसूसन मुसलमानों के खिलाफ नहीं है, इसके बावजूद अगर किसी को कोई शक व शुब्हा है तो उसके साथ बात करके सरकार उसका शक दूर करने के लिए हर वक्त तैयार है.

दिल्ली के शाहीन बाग समेत पूरे मुल्क में सीएए के खिलाफ बड़े पैमाने पर धरने व मुजाहिरों का सिलसिला महीनों चलता रहा लेकिन सरकार की जानिब से मुजाहिरा कर रहे लोगों खुसूसन ख्वातीन के नुमाइदों के साथ बात करने की कोई पहल नहीं की गई.

अनलाफुल एक्टिवीटीज प्रीवेंशन एक्ट (यूएपीए) का भी बेजा इस्तेमाल खुल कर किया जा रहा है और होम मिनिस्टर अमित शाह अपना वादा पूरा नहीं कर रहे हैं. ऐसी सूरत में वह लोग खुसूसन मुसलमान इंसाफ मांगने कहां किसके पास जाएं किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा है.

शहरियत तरमीमी कानून के खिलाफ शाहीन बाग और कश्मीर के मुजाहिरीन के मामलात सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे तो सर्वोच्च न्यायालय साफ कहा था कि- सीएए हो या सरकार का बनाया हुआ दूसरा कोई कानून देश के बाशिंदों को इस बात का बुनियादी और संवैधानिक हक हासिल है कि वह सरकार के बनाए हुए कानून से एख्तलाफे राय (असहमति) रखे और कानून के खिलाफ पुरअम्न तरीके से मुजाहिरा कर सके.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि शहरियों के मुजाहिरे रोकने के लिए सरकार दफा 144 का इस्तेमाल नहीं कर सकती है. अब हो यह रहा है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसी बीजेपी सरकारों वाली रियासतों में सीएए के खिलाफ सड़कों पर निकलने और मुजाहिरा करने वालों पर यूएपीए, नेशनल सिक्योरिटी एक्ट और गैंगस्टर एक्ट
जैसे सख्त कवानीन के तहत कार्रवाइयां हो रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट भी खामोश है और मोदी सरकार भी खामोश है. फिर तो मोदी सरकार को एक कानून यह भी बना देना चाहिए कि अब देश में सरकार के किसी भी फैसले के खिलाफ किसी को भी बोलने या मुजाहिरा करने का कोई हक नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट को साफ कह देना चाहिए कि सरकार का हर फैसला बिल्कुल सही है.

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट सरकारी ज्यादतियों का शिकार बनाए जाने वालों को कोई रिलीफ नहीं दे सकता सारा मसला ही खत्म हो जाएगा ठीक वैसे ही जैसे जून 1975 में मुल्क में लगी इमरजेंसी के दौरान हो चुका है.

सुप्रीम कोर्ट अगर यह मानता है कि सरकार के किसी भी फैसले की मुखालिफत और एहतिजाज करने का हक मुल्क के बाशिंदों को है तो फिर अब दिल्ली में सीएए के खिलाफ मुजाहिरा करने वालों की गिरफ्तारी पर अदालत खामोश तमाशाई क्यों बनी हुई है?

सीएए की मुखालिफत में आंदोलन करने के लिए सबसे ज्यादा सख्त सजा उत्तर प्रदेश के लोगों ने भुगती है. पहले तो दिसम्बर 2019 में आंदोलन के दौरान ही हो दर्जन से ज्यादा मुसलमान पुलिस की गोलियों का शिकार हो कर मौत के मुंह में चले गए.

हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया था, अधिकांश जमानत पर छूट गए बाकी जेलों में रहकर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.
इसके बावजूद अभी तक योगी आदित्यनाथ सरकार मुसलमानों और उनके साथ आंदोलन में शामिल हिन्दुओं को परेशान करने का कोई मौका छोड़ नहीं रही है.

योगी सरकार तुली हुई है कि आंदोलन के दौरान जो तोड़-फोड़ हुई थी उसकी वसूली आंदोलन करने वालों से ही की जाएगी. तीस जून को भी वसूली के लिए माहेनूर चौधरी और धर्मवीर सिंह की दुकानों को लखनऊ एडमिनिस्ट्रेशन ने सील करके अपने कब्जे में ले लिया.

इतना ही नहीं पेट्रोल की कीमतों में बेतहाशा इजाफे के खिलाफ कांग्रेस ने धरना मुजाहिरा किया तो आधी रात में पुलिस ने
प्रदेश कांग्रेस के चेयरमैन शाहनवाज आलम को उन्नीस जून को उठा लिया. प्रदेश कांग्रेस के सदर अजय कुमार लल्लू और लेजिसलेचर पार्टी के चेयरमैन आराधना मिश्रा (मोना तिवारी) ने जब थाने जाकर

गिरफ्तारी की वजह मालूम की तो बताया गया कि शाहनवाज आलम दिसम्बर 2019 में लखनऊ में हुए सीएए मुखालिफ आंदोलन में शामिल थे. लल्लू ने सवाल किया कि किसी रिपोर्ट में तो उनका नाम नहीं है, इसपर उन्हें धक्के देकर थाने से बाहर कर दिया गया. कुछ कांग्र्रेस वर्कर्स पर लाठियां भी चली वह अलग.

अहमदाबाद व भोपाल में यही हो रहा है कि लाकडाउन और काविड-19 की वबा के बावजूद ऐसे लोगों के खिलाफ यूएपीए समेत सख्त कवानीन में गिरफ्तारियां की जा रही है जो दिसम्बर 2019 में सीएए के खिलाफ आंदोलन और मुजाहिरों में शामिल थे.

क्या यह तमाम कार्रवाइयां वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी के इल्म में नहीं हैं? ऐसा मुमकिन ही नहीं है। फिर सबका साथ, सबको इंसाफ के उनके वादे का क्या हुआ?

(zadidmarkaj editorial)

Leave a Comment

Translate »
error: Content is protected !!