उत्तर प्रदेश में हर जिले के रैपिड सर्वे में पूर्व के निकाय चुनावों के आरक्षण में चुक्रानुक्रम में विसंगतियां सामने आ रही हैं.
कई नगर पंचायतें, नगर पालिका परिषद, वार्ड ऐसे हैं जहां वर्षों से एक ही वर्ग के लिए सीटें आरक्षित होती रहीं. ओबीसी आरक्षण के लिए गठित
पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से किए जा रहे जिलों के दौरे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं. 5 सदस्यीय आयोग के सदस्यों ने दो दर्जन जिलों का दौरा किया है.
सूत्रों का कहना है कि तथ्यों की पड़ताल से पता चल रहा है कि चक्रानुक्रम की मौजूदा प्रक्रिया भी दोषपूर्ण है. चक्रानुक्रम अनुसूचित जनजाति महिला,
अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति महिला, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग महिला व पिछड़ा वर्ग, अनारक्षित महिला व अनारक्षित के क्रम में चलता है.
इसके लिए छह से आठ बार चुनाव का चक्र पूरा होना चाहिए लेकिन चक्रानुक्रम में यह क्रम पूरा ही नहीं हो पाता है और आरक्षण नए सिरे से कर दिया जाता है.
नतीजा ये हुआ कि सालों से कई सीटें एक ही श्रेणी में आरक्षित होती रहीं और एक ही जाति या समुदाय के लोग काबिज होते रहे हैं.
कई जगह तो दूसरी जाति-वर्ग के लोगों की जनसंख्या बहुत अधिक होने के बावजूद उन्हें मौका नहीं मिला, इससे उस वर्ग में नाराजगी है.
वहीं रैपिड सर्वे में भी खामियां सामने आई हैं. रैपिड सर्वे को धरातल पर गहनता से नहीं उतारा गया. जातीय या समुदाय की जनसंख्या का सही आकलन किए बिना आरक्षण का निर्धारण किया गया.
आयोग को मिल रही रिपोर्ट से स्पष्ट हो रहा है कि आरक्षण के निर्धारण में जिलों से लेकर नगर विकास विभाग के स्तर तक कुछ भी करने की गुंजाइश रहती है.
सूत्रों का कहना है कि आयोग ने अब तक के भ्रमण में पाया है कि आरक्षण निर्धारण में नगरीय निकाय अधिनियम के पालन में भी
कई स्तर पर अनदेखी की जाती रही है. आयोग अब एक-एक जिले में निर्धारित आरक्षण का एक्ट के अनुसार जांच करने में जुटा है.
फूल प्रूफ सिस्टम तैयार करने की कोशिश:
सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति राम औतार सिंह की अध्यक्षता में गठित आयोग अब फूल प्रूफ सिस्टम तैयार करने में जुटा है ताकि भविष्य में निकाय चुनाव में आरक्षण निर्धारण में कोई त्रुटि न हो.
चक्रानुक्रम शत प्रतिशत सही निर्धारित हो, बारी-बारी से सभी समुदायों को नेतृत्व का मौका मिले. इसके लिए आयोग के अध्यक्ष और सदस्य बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में ट्रिपल ट्रेस्ट की व्यवस्था के बाद निर्धारित आरक्षण का भी अध्ययन कर रहे हैं.
1995 से 2017 तक आरक्षण का विश्लेषण:
आयोग ने सभी जिलाधिकारियों से 1995 से 2017 तक हुए निकाय चुनावों में निर्धारित आरक्षण का ब्योरा मांगा है.
आयोग ने पूछा है कि इस अवधि में किस सीट पर किस श्रेणी का आरक्षण हुआ? आरक्षण निर्धारण की प्रक्रिया क्या थी?
संबंधित सीट पर किस जाति के अध्यक्ष, महापौर निर्वाचित हुए? जिलों से मिल रहे इस आंकड़े का आयोग स्तर पर विश्लेषण किया जा रहा है.
प्रक्रिया में बदलाव के लिए कानून में संशोधन की सिफारिश संभव
सूत्रों का कहना है कि आयोग प्रक्रिया को फुलप्रूफ बनाने के लिए रैपिड सर्वे व चक्रानुक्रम आरक्षण की मौजूदा प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर बदलाव की सिफारिश कर सकता है.
इसके लिए मौजूदा कानून में बदलाव की संस्तुति भी की जा सकती है. उधर, सरकार अप्रैल-मई में निकाय चुनाव की तैयारी कर रही है.