(मेघा बहल की कलम से)
फादर स्टेन स्वामी ”न तुम कभी गए, न हुआ उलगुलान का अंत” आज जब उधेड़ा जाएगा तुम्हारा पार्थिव शरीर,
क्या देखेंगे ये समाज, सरकारें, और न्यायपालिका? डली भर ईमानदारी, आदिवासी संघर्षों के प्रति चंद लेख, चिन्हित करते अन्याय के किस्से
और विचाराधीन कैदियों की आजादी का एक छोटा सा गीत. फिर परसों जब बगाईचा तक लाई जाएगी तुम्हारी राख
आंगन में स्थित बिरसा मुंडा की मूरत से रूबरू होगे तुम, तब उलगुलान की आग फिर होगी ज्वलंत, क्योंकि न बिरसा कभी मरा था,
फादर स्टेन स्वामी की मौत, मौत नहीं हत्या है, जिम्मेदार सरकार- रिहाई मंच
न हुआ उलगुलान का अंत. जब सत्ता के गलियारों में तुम्हें फिर “आतंकी” कहा जाएगा और न्यायपालिका पुलिस के झूठों पर फिर भरेगी हामी
तभी झारखंड के पेड़ों और नदियों से उछलेंगे नारे, कहीं एक कलम भी उठेगी तुम्हारी याद में क्योंकि न तुम कभी गए, न हुआ उलगुलान का अंत.