भारत जैसे देश में चुनाव लड़ना अलग बात लेकिन अगर पार्टी में कथित बदमाश न हों तो यह आपको सोचने पर अवश्य मजबूर कर देगा। इसी सिलसिले में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका डाली गई थी जिसका उद्देश्य राजनीतिक दलों द्वारा गम्भीर अपराधियों को दिए गए टिकट के बारे में जानना था।
इस पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई करते हुए कहा कि अगर कोई दल ऐसे उम्मीदवार को टिकट देता है तो उसकी मान्यता रद्द की जा सकती है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राजनीति का आपराधीकरण एक सड़न है। अतः यह अति आवश्यक है कि चुनाव आयोग किसी भी पार्टी से उसके सदस्य के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों का लेखा जोखा ले। न्यायालय ने कहा इससे कम से कम मतदाता जिसको वोट देने जा रहा होगा उसके अपराधी होने की जानकारी तो उसे होगी। यह टिप्पणी संविधान की एक 5 सदस्यीय पीठ ने की।जिसकी अध्यक्षता जस्टिस दीपक मिश्रा कर रहे हैं।
इस पीठ ने कहा कि ‘यह हर कोई समझता है, हम संसद को कोई कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते। सवाल यह है कि हम इस सड़न को रोकने के लिए क्या कर सकते हैं। बताते चलें कि कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के बंटवारे का एक सिद्धांत है। जिसके तहत ही सुप्रीम कोर्ट ने उक्त प्रकार की टिप्पडी की है।
कोर्ट ने कहा कि अगर किसी पार्टी ने आपराधिक या किसी अन्य मामले का सामना कर रहे व्यक्ति को टिकट दिया तो उस पार्टी के चुनाव चिन्ह की मान्यता तक भी रद्द की जा सकती है। इसके आगे कोर्ट ने कहा,’ कोई भी किसी को अयोग्य घोषित नहीं कर रहा है। हम चुनाव आयोग को निर्देश दे सकते हैं कि यदि कोई व्यक्ति आपराधिक आरोपों का सामना कर रहा है और उसे चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई है तो उस राजनीतिक दल का चुनाव चिन्ह हटा दिया जाए।’पीठ ने ये भी कहा कि सांसद के अयोग्यता का मुद्दा कोर्ट के दायरे में नहीं आता है।
बतातें चलें कि यह याचिका एक एनजीओ ‘पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन’ द्वारा डाली गई है। जिसकी तरफ से अदालत में पेश हुए वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि कोर्ट यह तय करे कि अगर किसी व्यक्ति या सांसद के खिलाफ आपराधिक मामले में आरोप तय हो चुका है तो उसे चुनावी राजनीति में आने से कैसे रोका जाए।