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जैसा कि इस समय देश के पांच अलग-अलग राज्यों में उत्तर प्रदेश उत्तराखंड गोवा पंजाब मणिपुर चुनाव की घोषणा हो चुकी है.

उत्तर प्रदेश में तो आगामी 10 फरवरी से यह चुनाव शुरू होने जा रहा है किंतु मतदाताओं को सभी राजनीतिक दल अपने-अपने पक्ष में मतदान करने के लिए लालच और लुभावने घोषणा करते जा रहे हैं.

इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है जिसमें बताया गया है कि जनता के पैसों को राजनीतिक दल अपनी सत्ता बनाने के लिए लालच दे रहे हैं.

इससे लोकतंत्र की बुनियादी तस्वीर प्रभावित हो रही है जिसे रोका जाना चाहिए. ऐसे में शीर्ष न्यायालय ने केंद्र सरकार तथा चुनाव आयोग

को नोटिस जारी करते हुए उससे 4 हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है. मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना, न्यायाधीश एस बोपन्ना तथा न्यायाधीश हिमा कोहली

की पीठ पर सुनवाई कर रही है.  याची भाजपा नेता और वकील अश्वनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए

मुख्य न्यायमूर्ति रमन्ना ने कहा है कि मुफ्त उपहारों की घोषणा चुनाव के समय करना निसंदेह एक गंभीर मुद्दा है.

मुफ्त उपहारों का बजट नियमित बजट से परे होता है और सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा है कि कई बार इससे कुछ पार्टियों को समान अवसर नहीं मिल पाता है.

लेकिन सीमित दायरे में हम क्या कर सकते हैं. हमने चुनाव आयोग को दिशा निर्देश बनाने को कहा था. इसका जवाब देते हुए

याचिकाकर्ता के वकील विकास ने बताया कि- “दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं लेकिन वह प्रभावकारी नहीं हैं यानी बोलने के लिए मुंह तो है लेकिन काटने के लिए दांत नहीं है.”

आपको यहां याद दिला दें कि शीर्ष न्यायालय की पीठ ने सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया है

जिसमें कोर्ट ने बताया था कि घोषणा पत्र में किए गए वादों को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता है.

हालांकि चुनाव आयोग को घोषणा पत्र दिशानिर्देश तैयार करने और इसे राजनीतिक दलों के मार्गदर्शन के लिए आदर्श आचार संहिता में शामिल करने का निर्देश है.

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