गौरतलब है कि 2007 के गोरखपुर दंगे के भड़काऊ भाषण मामले में यूपी सरकार ने सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा चलाने से मना कर दिया था। यूपी सरकार का कहना था कि जरूरी साक्ष्य न मिलने की वजह से केस वापस लिया जा रहा है। तब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा चलाए जाने की याचिका खारिज कर दी थी।
आपको बता दें कि 2007 के तत्कालीन गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ ने मुहर्रम के दौरान भड़काऊ भाषण दिया था जिससे दंगा भड़क गया था। इसकी वजह से कई दिनों तक क्षेत्र में तनाव बना रहा जिससे कई युवाओं को अपनी जान तक गवानी पड़ी थी। इस दंगे के कारण योगी आदिनाथ के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 307, 153A, 395, 295 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। जिसकी जांच सीबीसीआईडी से कराई गई थी। तत्कालीन सपा सरकार की मेहरबानी से अनुमति ना मिलने के कारण सीबीसीआईडी ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चार्जशीट नहीं दाखिल की थी।
याचिकाकर्ता परवेज परवाज और असद हयात ने 2008 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी और अनुरोध किया था कि किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी से इसकी जांच कराई जाए।
फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1 फरवरी 2018 को इस याचिका को साक्ष्य उपलब्ध न होने के कारण खारिज कर दिया था। उसके बाद याचिकाकर्ता परवेज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि हमारे पास योगी आदित्यनाथ के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।
इसी मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस भेजकर तलब किया है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि योगी आदित्यनाथ पर 2007 के भड़काऊ भाषण मामले में मुकदमा क्यों ना चलाया जाए। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से 4 हफ़्तों के भीतर जवाब देने को कहा है।