पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा दिया गया चुनाव व लोकतन्त्र क्या असल में लोकतांत्रिक है?

क्या उंगली में स्याही लगाकर और मोहरे बदलकर ख़ुशफ़हमी में रहना काफ़ी है या फिर सच्चे जनतंत्र की चाभी कहीं और ढूँढने की ज़रूरत है? कहने को कथित पूँजीवादी जनवाद में भी लोगों को हर 4-5 साल पर चुनाव द्वारा सरकार बदलने का मौक़ा दिया जाता है पर क्या सही अर्थों में चुनाव के ज़रिये … Read more

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