‘यूं तो कागज की कश्ती से, बह जाते हैं लम्हें’- निशा सिंह
BY- NISHA SINGH यूं तो कागज़ की कश्ती से, जाते हैं लम्हें। यदि रुक जाएं तो, यादों का समंदर बन जाते हैं लम्हें।। ना वक़्त रुका ना ये कायनात, बस पलक झपकते ही गुज़र जाते हैं लम्हें।। मन चाहे तो जी लूं हर सपना अपना, पर छूते ही हाथ से निकल जाते हैं लम्हें।। जन्म से … Read more