महिलाओं को लेकर तालिबान की मंशा अब धीरे-धीरे दुनिया के सामने आने लगी है. मिली जानकारी के मुताबिक अफगानिस्तान के एक टीवी समाचार चैनल ‘टोलोन्यूज’
से बातचीत के दौरान तालिबान प्रवक्ता ने महिलाओं को लेकर अटपटा बयान देते हुए कहा है कि-” अफगानिस्तान की सरकार में महिलाओं को मंत्री पद नहीं दिया जाएगा. उन्हें केवल बच्चे पैदा करना चाहिए क्योंकि एक महिला मंत्री होकर अपनी जिम्मेदारी को नहीं संभाल सकती.”
आपको बताते चलें कि तालिबान सरकार बनने से लेकर अभी तक महिलाएं प्रदर्शन करते हुए मांग कर रही हैं कि उनकी सुरक्षा तथा अधिकारों की गारंटी सुनिश्चित होनी चाहिए.
नवीन बने सरकार में महिलाओं के बीच इस बात को लेकर काफी आक्रोश है कि तालिबान सरकार ने किसी भी महिला को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी है.
इस संबंध में उनका कहना है कि तालिबान का यह रवैया उनकी महिला विरोधी सोच को साफ दर्शा रहे हैं.
हालांकि जो महिलाएं मंत्रीमंडल में जगह पाने के लिए विरोध कर रही हैं उन्हें तालिबानियों के द्वारा मारा-पीटा और धमकाया जा रहा है.
यहां तक कि जो पत्रकार इन महिलाओं पर होने वाले जुल्म की रिपोर्टिंग कर रहे थे उन्हें हिरासत में लेकर तालिबानी लड़ाकों द्वारा बेरहमी से पीटा जा रहा है.
महिलाओं की स्वतंत्रता पर अंकुश इस बात से भी लगता नजर आ रहा है कि 8 सितंबर को गठित तालिबान संस्कृतिक आयोग के उप प्रमुख अहमदुल्लाह वासिक ने बताया कि-
“देश की महिलाओं के लिए खेल गतिविधियां जरूरी नहीं हैं, अफगानिस्तान की महिला क्रिकेट सहित किसी भी अन्य खेल में हिस्सा नहीं लेगी,
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क्योंकि खेल-कूद से जुड़ी गतिविधियां इनके शरीर को बेनकाब कर देंगी. खेलने के दौरान लड़कियों को दर्शक देखेंगे,
उनकी फोटो और वीडियो भी मीडिया के द्वारा दिखाया जाएगा जिसकी इजाजत इस्लाम नहीं देता है.”
महिलाओं की शिक्षा के संबंध में भी तालिबान ने फरमान जारी किया है कि बच्चियों को केवल महिला शिक्षक पढ़ाएंगे.
यदि वह उपलब्ध नहीं है तो ऐसे हालात में बूढ़े शिक्षकों से छात्राएं पढ़ सकती हैं. दरअसल इन सारे अरमानों के पीछे तालिबान संस्कृति योग के उपप्रमुख अहमदुल्लाह वासिक
ने स्पष्ट तौर पर बताया है कि- इस्लाम के हित में उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी है तथा किसी भी तरह से अपने धर्म के साथ वह समझौता करने को तैयार नहीं है.
ऐसे में महिलाओं पर तालिबान जिस तरीके से असहज हो रहा है उसके प्रकाश में अफगान महिलाओं के भविष्य को लेकर चिंता जताना लाजमी है.
लोगों में इस बात का भी खौफ है कि कहीं 90 के दशक की तालिबानी हुकूमत फिर से न आ जाए क्योंकि इन्होंने महिलाओं को शिक्षा और नौकरी जैसे बुनियादी हक
के लिए सदैव पाबंदी लगा दिया था जिसके कारण महिलाओं की माली हालत सोचनीय हो गई. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी
तालिबान के कब्जे वाले क्षेत्रों में मानव अधिकारों पर लगी पाबंदियों को लेकर चिंता व्यक्त किया है.