टीपू सुल्तान आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन इतिहास में उन की धमक आज भी है और कुछ नेता उन पर गन्दी राजनीत करते हैं ये देश हित में दुर्भाग्य की बात हैे. खैर,
” गीदड़ की सौ बरस की ज़िन्दगी से शेर की एक दिन की ज़िन्दगी बेहतर है”
इस वाक्य को सिर्फ ज़ुबान से कहकर नहीं बल्कि अपने छोटे से जीवनकाल में कई प्रजाहित और देशहित के लिए महान कार्य कर अपने कहे शब्दों के साथ इंसाफ भी किया.
217 साल पहले 4 मई, 1799 को टीपू सुल्तान दुनिया से कूच कर गए लेकिन आज भी उन से हमारा दिली जुड़ाव वैसा ही मज़बूत है और वो जुड़ाव है उन की विरासत के जरिए. एक नजर उन खास चीजों पर जिनके जरिए टीपू की विरासत आज भी हमारे बीच सुरक्षित है.
★ मैसूर के कपड़े को खास बनाने का श्रेय टीपू को ही जाता है.
★ मैसूर क्षेत्र में रेशम के कीड़े पालने के व्यवसाय की शुरुआत टीपू ने ही करवाई थी.
★ टीपू सुल्तान ने बंगाल से शहतूत के पेड़ लगाने की कला सीखी और अपने राज्य में 21 अलग-अलग केंद्रों पर इसकी ट्रेनिंग देनी शुरू की. आगे चलकर ये उद्योग मैसूर का सबसे प्रमुख उद्योग बना.
आज ज़माना जानता है कि मैसूर का रेशम (सिल्क) देश भर में अपनी “गुणवत्ता के चलते” जाना जाता है.
टीपू ने न सिर्फ बाहर से कपास के आयात पर रोक लगाई बल्कि इस बात का भी पूरा ख्याल रखा कि हर बुनकर को कपड़े तैयार करने के लिए अच्छी मात्रा में कपास मिलता रहे…!
★ टीपू ने गन्ने की खेती के लिए चीनियों की मदद ली और बड़ी मात्रा में मैसूर में गन्ने की खेतीे होने लगी. यह टीपू सुल्तान का ही योगदान माना जाता है. इस खेती के लिए टीपू सुल्तान ने चीनी विशेषज्ञों की मदद ली थी. जिनके संरक्षण में अच्छी गुणवत्ता के गुड़ और शक्कर का उत्पादन होता था.
★ टीपू ने बहुत सी जंगें लड़ीं जिन में चार बड़ी मशहूर जंगें अंग्रेजों से लड़ी गयीं, अपनी लड़ाइयों के बीच टीपू को जो थोड़ा सा शांति का वक्त मिला उस दौरान उनहों ने कई समाज सुधार के काम किए जिस में से एक बड़ा काम शराबबंदी का था.
★ टीपू सुल्तान का पालतू जानवरों और खेती से गहरा रिश्ता रहा है. टीपू सुल्तान ये बात समझते थे इसलिए उन्होंने जानवरों की अच्छी नस्लें तैयार करने पर भी खासा योगदान दिया. ‘हल्लीकर’ और ‘अमृत महल’ नस्ल की गायों की प्रजाति का विकास उनके इन कदमों का ही ठोस परिणाम माना जाता है.
कहा जाता है कि देशी नस्ल की गायों का प्रयोग वो पहाड़ियों पर हथियार चढ़ाने में भी करते थे. यानी जिस गाय के नाम पर देशभर में आज नेता पॉलिटिक्स-पॉलिटिक्स खेल रहे हैं, उस गाय से टीपू का बड़ा ही खास रिश्ता था.
★ भारत की देसी रॉकेट टेक्नोलॉजी टीपू सुल्तान की ईजाद है, टीपू सुल्तान के मिसाइल कारखाने को अब संग्रहालय में बदल दिया गया है.
वर्तमान इतिहासकार मानते हैं कि भारत में मिसाइल या रॉकेट टेक्नोलॉजी का प्रारंभिक ज्ञान टीपू का ही लाया हुआ है. ये आजकल के आधुनिक मिसाइल और रॉकेट की तरह ही हुआ करते थे. अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाइयों में टीपू ने इन रॉकेट का खुलकर प्रयोग किया था.
इनमें से कुछ आज भी इंग्लैण्ड के रॉयल आर्टिलरी म्यूजियम में सुरक्षित हैं. ‘दरिया दौलत’, जो कि टीपू का गर्मियों का महल हुआ करता था, श्रीरंगपट्टन्नम में है. यहां पर जो पेटिंग्स मिलती हैं उनसे साफ पता चलता है कि युद्ध में बड़े स्तर पर टीपू ने मिसाइलों का इस्तेमाल किया था.
टीपू के श्रीरंगपट्न्नम के महल में एक अहाता है जहां से इन मिसाइलों को लॉन्च किए जाने के सुबूत भी मिलते हैं. डीआरडीओ के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों ने भी इस जगह का दौरा किया था. साथ ही कई बार उन्होंने उसके अच्छे रखरखाव की गुजारिश भी की है. यहां पर एक #मिसाइल_मियूज़ीयमबनाए जाने का भी सुझाव है.
‘#मेकइनइंडिया’ से सदियों पहले टीपू ने चलाया था ‘#मेकइनमैसूर’ अभियान
टीपू को पश्चिमी विज्ञान और तकनीक से बहुत लगाव था. उसने कई बंदूक बनाने वाले, इंजीनियर, घड़ी बनाने वाले घड़ीसाज और दूसरे तकनीकी विशेषज्ञों को फ्रांस से मैसूर बुलाया. उसने मैसूर में ही कांसे की तोप, गोले और बंदूकें बनानी शुरू कीं जिन पर ‘#मेडइनमैसूर’ लिखा होता था…!
हाल में ही आई ‘केट ब्रिटलबैंक’ की किताब ‘लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान’ की माने तो टीपू सुल्तान अपने वक्त में ब्रिटेन में भारत का ब्रिटेन के लिए सबसे डरावना इंसान माना जाता था. माने ब्रिटेन में लोग उस वक्त उसका बहुत भय मानते थे इसीलिए जब टीपू की मौत हुई तो वहां पर खुशियां मनाई गईं.
★ टीपू ने ऑटोमन और फ्रेंच सम्राटों के पास मदद की मांग के लिए दूत भेजे. टीपू ने ‘ख्वाबनामा’ नाम की एक किताब भी लिखी थी. इसमें वो अपने सपनों के बारे में लिखा करते थे. वो इन सपनों को अपनी लड़ाइयों के नतीजों से जोड़कर तुलना करते थे.
ऐसे भारत के सच्चे वीर, शहीद योद्धा, प्रजा के असली राजा, समता, बंधुत्व और न्याय के साथ व्यवस्था स्थापित करने वाले महान इंसान के यौमे पैदाइश के मौक़े पर हम सभी उन्हें खिराजे तहसीन पेश करते हैं.