BY–अनुभव शुक्ला
सिपाही की भी सुन लो….
सीधी सी बात है कल की घटना से तीन घर तबाह हुए। पहला विवेक तिवारी का, जो इस दुनिया में नहीं रहा। वो तो बहुत पढ़ा लिखा MBA, MCA और जाने क्या- क्या। आप Apple जैसी नामचीन कंपनी के एरिया मैनेजर और गोमतीनगर वासी हैं…आपके भारी भरकम संपर्क भी हैं। सिपाही ग्रामीण पृष्ठभूमि से गरीब, कम पढ़ा लिखा। अब हर प्वाइंट पर IPS, PPS तो ड्यूटी करेंगे नहीं। गश्त के सिपाहियों को निर्देश होते हैं… भ्रमणशील रहकर संदिग्ध व्यक्ति/ वाहनों को रोकने टोकने हेतु। उसको लगा कि आधी रात के बाद कोई गाड़ी रोड पर खड़ी है, बिना वजह के … सो उसने टोंका। आप देश की सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त सभ्य नागरिक थे, आप गाड़ी से बाहर आकर अपना परिचय देते, बेवजह रुकने का कारण बताते…अपने घर चले जाते। वो आपसे पैसे मांगता आपके लिए उसकी वर्दी उतरवाना कौन सी बड़ी बात थी। लेकिन आप ठहरे सभ्य नागरिक, आपको बात नागवार गुजरी। सिपाही जैसा छोटा आदमी कैसे mahindra SUV जैसी बड़ी गाड़ी सवार को टोंक दिया। इतनी बड़ी गाड़ी खरीदने का अब क्या फायदा रहा। आप अपनी महिला सहयात्री जो आपकी कंपनी से डस्मिस्ड थी, को कंपनी को ज्वाइन करा रहे थे, को अपना भोकाल दिखाने और सिपाही को भयभीत करने के उद्देश्य से सिपाही की ओर तेजी से गाड़ी बढ़ा देते हैं। सिपाही डर जाता है । गाड़ी छोड़ दूर हट जाता है। आप फिर भी मानते ..गाड़ी को हिट करके क्षतिग्रस्त कर देते हैं। सिपाही को कुछ समझ नहीं आता वो भी डरकर गोली चला देता है, भागकर थाने पहुंचता है, सूचना देने। लेकिन कोई बेचारे की नहीं सुनता।
खैर मुकदमा लिखना था, लिख गया। सिपाही दोनों जेल गए। सभ्य नागरिक को मुआवजा मिला, पत्नी को राजपत्रित अधिकारी की नौकरी मिल जाएगी।
प्रश्न यह है कि बर्बाद कौन हुआ? गरीब परिवार का हमारा सिपाही, जो अपने परिवार का इकलौता कमाने वाला होता है। नौकरी गई, जो जमीन जेवर घर पर होगा, मुकदमे की पैरवी में चली जाएगी।
पुलिस जो बेचारी रात रात भर जागती है, कि कहीं कोई SUV वाला बलात्कार करके लाश ना फेंक दे या कोई असलहा या नारकोटिक्स सप्लायर तो नहीं है? कोई चोर इत्यादि तो नहीं है? वहीं पुलिस बेबस और लाचार होकर अपने ही अंग को काट कर फेंक रही है। उसकी मेहनत और कुर्बानियों का उसकी छवि के हनन के रूप में उसको यही सिला मिलना था।
सिपाही नहीं जानता था..की
आप कौन हैं?
आपकी जाति क्या है?
गाड़ी आधी रात के बाद सड़क पर बेवजह क्यूं रुकी है?
सिपाही की SUV सवार से कोई दुश्मनी भी नहीं है?
फिर क्यूं वह बेवजह किसी पर गोली चलाएगा?
उसे मालूम है, किसी असलहे की क्या कारगर रेंज है? पुलिस के ऊपर आरोप लगते ही मात्र उसके ऊपर कार्यवाही ही होती है, जांच तो होती ही नहीं है, फिर क्यूं वह किसी पर गोली चलाएगा। हम रात दिन पुलिस के खिलाफ हो रही कार्यवाहियों के दृष्टांत देखते हैं। हम जानते हैं कि गोली चलेगी, तो जेल जाना है। जब तक अपनी जान पर नहीं बन आएगी, गोली नहीं चलेगी।
निष्पक्षता से देखा जाए तो सभ्य नागरिक की करतूत से ऐसे हालात बेवजह बन गए,जो बाद में ऐसी घटना के कारण बने। सभ्य नागरिक ने हमारे दो सिपाहियों की बलि ले ली और उनके घर तबाह कर दिए।
आपको संविधान प्रदत्त अपने सारे अधिकार पूरे के पूरे याद हैं… क्या कोई कोई कर्तव्य भी याद है? भारत के कानून का सम्मान करना और law inforcement agencies से सहयोग करना आपको किसी ने नहीं बताया?
(यह लेख अनुभव शुक्ला के फेसबुक वाल से लिया गया है जो लेखक के निजी विचार हैं । द फायर इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है )