‘पूर्वांचल के गांधी’ का हिंदूवादी संगठनों के नारे मुसलमान मुक्त उत्तराखंड पर धामी सरकार के विरुद्ध सवालिया निशान

दिल्ली विश्वविद्यालय के विख्यात इतिहास विभाग से आर्कियोलॉजी इंडोलॉजी हिस्ट्री में पीएचडी ‘पूर्वांचल के गांधी’ कहे जाने वाले डॉ संपूर्णानंद मल्ल जो

समाज में व्याप्त शोषण और अत्याचार के विरुद्ध सदैव मुखरित होकर खड़े रहते हैं. इन्होंने उत्तराखंड में मुस्लिम समाज एवं परिवारों को धमकी देकर

सांप्रदायिक आधार पर उनके निवास स्थान से उजाड़ने को लेकर पुष्कर धामी सरकार से सीधे तौर पर सवाल पूछा है कि राज्य में इस तरह की कृत्य में संविधान और मनुष्यता का कितना अंश है.?

इन्होंने माननीय राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं सचिव, मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को पत्र लिखा है. ऑडियो-वीडियो मीडिया से यह लगातार जानकारी मिल गई है कि

“मुसलमान मुक्त उत्तराखंड” के लिए हिंदूवादी संगठनों ने मुस्लिम लोगों एवं परिवारों को 15 जून तक पुराला छोड़ देने की चेतावनी दी है.

जानकारी अनुसार कुछ परिवारों ने अपना घर एवं प्रिमाइसेस छोड़ दिया है. “दारुण विस्थापन (पेनफुल माइग्रेशन) आप ने गंभीरता से नहीं सोचा जबकि आपको सोचना चाहिए.

उत्तराखंड की प्रजा का आपके ऊपर बराबर अधिकार है और आप उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हैं हिंदुत्व या हिंदू के मुख्यमंत्री नहीं हैं.

बच्चे, वृद्ध एवं महिलाओं के लिए विस्थापन कितना दुखदाई होता है, शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता, इसमें जरा सी मनुष्यता नहीं होती यह बर्बरता है.

इस्लाम पंथियों से इतनी नफरत क्यों? आप जिस कुर्सी पर बैठे हैं. वह 1857 के महानायक बरेली के महान सूरमा बहादुर खान, दिल्ली के बादशाह,

बहादुर शाह जफर, ब्रह्मावर्त बिठूर कानपुर के नाना साहब के सलाहकार अजीमुल्ला खां और फैजाबाद के मौलवी अहमद खां की चमकती तलवारों की धार के कारण है.

यह मिट्टी हिंदू-मुसलमानों के खून से सनी बनी है. एक मनुष्य होने के नाते जब से यह खबर मैंने पढ़ी है, टीवी पर देखी है मेरा मन बहुत दुखी है.

मैं आपसे एक ही निवेदन करना चाहता हूं कि जो परिवार पुरोला उत्तराखंड या किसी अन्य जगह से विस्थापित हों गए हो पलायन कर चुके हैं.

उन परिवारों के एक-एक सदस्य को खोज कर उनकी बस्तियां, उनके आशियाने, उन्हें वापस कर दिए जाएं और यह सुनिश्चित हो कि

एक भी व्यक्ति उत्तराखंड की उस देवभूमि से महरूम न होने पाए क्योंकि यह हमारी संस्कृति नहीं है. यदि 30 दिनों के भीतर आपने मनुष्यता का परिचय नहीं दिया

और संविधान की रक्षा नहीं की तब मैं देहरादून के उसी विधायिका के सामने सत्याग्रह करूंगा जिसमें आप उत्तराखंड की प्रजा की जीवन रक्षा एवं सेवा की शपथ ले चुके हैं. सत्य, अहिंसा आधारित सत्यपथ कर विधायिका नहीं चलने दूंगा.

अपने परिचय में बताया है कि, मैं किसान पुत्र हूं. खेती करता हूं, अपना पेट भरने के अतिरिक्त एक लाख लोगों के लिए एक दिन के खाने का अनाज पैदा करता हूं.

अपने मित्रों के साथ 50 यूनिट से अधिक रक्त सरकार एवं गोरक्ष ब्लड बैंक को डोनेट कर चुका हूं. विगत 35 वर्षों में 10 हज़ार पेड़ों का एक उद्यान लगाया हूं जो हजारों लोगों का जीवन स्रोत ऑक्सीजन देता हैं.

दो हजार पुस्तकों की निजी “शांतिवन पुस्तकालय” में गरीबी “संप्रदायिकता” के विनाश पर शोधरत हूं, किसी गिरोह बंद दल का दलाल नहीं हूं.

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