BY-THE FIRE TEAM
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि राज्य नियुक्तियों और पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं और पदोन्नति में आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
जबकि भारत का संविधान का अनुच्छेद 16 (4) कहता है कि राज्य के अधीन नौकरियों में अगर किसी समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो राज्य को नागरिकों के किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए कोई भी प्रावधान करने का अधिकार देता है।
77 वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से, अनुच्छेद 16 में एक नया खंड (4A) जोड़ा गया, जिससे राज्य को अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति के मामलों में आरक्षण का प्रावधान करने का अधिकार मिलता है। यह तभी लागू होगा यदि राज्य को लगता है कि उनका सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
संविधान के अनुच्छेद 16 (4) और 16 (4 ए)यह भी कहता है कि अगर इस समाज का नौकरियों में प्रतिनिधित्व है तो राज्य सरकार को नियुक्ति के लिए आरक्षण प्रदान करने के लिए निर्देशित (force) नहीं किया जा सकता है।
मतलब यह कि राज्य पदोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण करने के लिए बाध्य नहीं है।
तो हम यह कह सकते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) और 16 (4-ए) ने पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने के मौलिक अधिकार नहीं हैं।
लेकिन राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में नियुक्ति और पदोन्नति के मामलों में आरक्षण देने का अधिकार है केवल तब जब “यदि राज्य की राय में वे राज्य की सेवाओं में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं”।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राज्य सरकार के पास आरक्षण प्रदान करने का अधिकार है।
हालाँकि, अगर कोई राज्य अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहता है और पदोन्नति में आरक्षण करता है, तो उसे पहले क्वांटिफ़िबल डेटा (नौकरियों में इनकी भागीदारी) एकत्र करना होगा, जो सार्वजनिक सेवाओं में किसी वर्ग या समुदाय के प्रतिनिधित्व की कमी को दर्शाता है।
यदि राज्य सरकार द्वारा किसी विशेष सार्वजनिक पद पर पदोन्नति में एससी / एसटी आरक्षण प्रदान करने के निर्णय को चुनौती दी जाती है, तो उसे आंकड़े पेश करने होंगे और अदालत के सामने यह साबित करना होगा कि आरक्षण आवश्यक है और प्रशासन की दक्षता को प्रभावित नहीं करता है।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं अगर सरकार चाहे तो आरक्षण का लाभ मिलेगा नहीं तो वंचित कर दिया जायेगा।
मतलब सीधा सा है अब आरक्षण उसी को मिलेगा जिसके पास सत्ता की चाभी होगी ।
READ- पदोन्नति में आरक्षण: संवैधानिक या असंवैधानिक?
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