लिखकर दे सकता हूं कि घर की महिलाओं को बहुजन विचारधारा से जोड़े बगैर आप मनुवाद के खिलाफ इस लड़ाई में कभी नही जीत सकते.
इसकी बड़ी सीधी सी वजह है कि सबसे ज्यादा पाखंडवाद जैसे सोमवार, शुक्रवार, शनिवार, महाशिवरात्रि, नवरात्र, छठ पूजा, करवाचौथ आदि के व्रत यही रखती हैं और पूजा-पाठ के चक्कर में आकंठ डूबी हुई हैं.
मनुवाद का सारा बोझ इन्होंने अपने कंधों पर उठा रखा है. अनपढ़ या कम पढ़ी-लिखी तो छोड़ो, अच्छी खासी पढ़ी-लिखी, कामयाब नौकरीपेशा महिलाओं को भी अपने इतिहास की जरा सी जानकारी नहीं है.
बाकी इनसे आप एक-एक व्रत कथाएं जुबानी सुन लीजिए मजाल जो कहीं अटक जाएं. शिवलिंग पूजन से शुरू करके जागरण में माता की थाल सजाने से लेकर सारी रात बैठकर हथेलियां पीटना इन्हें बखूबी आता है.
परंतु इतना सब होने के बावजूद मुझे यह कहने में कोई हर्ज नही कि इस मानसिक बीमारी की वह अकेली जिम्मेदार नहीं है. इसके जिम्मेदार वो पुरुष भी हैं जो
सुबह अपने काम-धंधों पर निकल जाते हैं और पीछे इन्हें छोड़ जाते हैं ब्राह्मणवादी मानसिकता वाले टीवी और अखबार के सहारे जो दिन भर इन्हें भजन कीर्तन कराते रहते हैं.
इतना ही नही यदि कहीं कोई जागरूकता कार्यक्रम भी लगता है तो वहां हम अपनी तौहीन समझकर इन्हें ले जाना पसंद नहीं करते. क्या हमारा फर्ज नही बनता कि
“हम इन्हें महात्मा गौतम बुद्ध, छत्रपति शाहू जी महाराज, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, माता फातिमा शेख, रामास्वामी पेरियार नायकर, ललई सिंह यादव,
सर छोटूराम, संतराम B.A. प्रजापति, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर, मान्यवर कांशीराम साहेब की विचारधारा से जोड़ने का कार्य करें ताकि ये खुद जागरूक होकर कई पीढ़ियों का उद्धार करें.”
आज जब आप घर जाएं तो इस बात को ठंडे दिमाग से सोचिएगा जरूर कि अगर आपके घर में ही परिवर्तन नहीं हो पा रहा है तो इसका मूल क्या है, कहीं इसके जिम्मेदार आप भी तो नहीं ?👈
(सिम्मी आंबेडकर)
यह लेख सागर निडर गौतम के फेसबुक पेज से लिया गया है